पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के बारे में कहा जाता है कि उन्हें सुर्ख़ियों में रहने का कोई शौक नहीं है.
लेकिन हाल के दिनों में सुर्ख़ियां ख़ुद उनका पीछा कर रही हैं.
उनका नाम भारत और पाकिस्तान के अलावा दुनिया की कई राजधानियों में लिया जा रहा है.
जनरल आसिम मुनीर ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए हमले से कुछ दिन पहले ही कश्मीर को लेकर एक बयान दिया था.
इस बयान ने पाकिस्तान की सैन्य नीति और घाटी में तनाव बढ़ाने में पाकिस्तान की भूमिका पर बहस छेड़ दी है.
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आसिम मुनीर ने जिन शब्दों और जिस लहजे का इस्तेमाल किया उसे कई विश्लेषकों ने उनके नेतृत्व में पाकिस्तान की सेना को टकराव की तरफ़ बढ़ने के रूप में देखा.
जनरल आसिम मुनीर को पाकिस्तान का सबसे ताक़तवर व्यक्ति माना जाता है. यानी एक ऐसे देश का सबसे ताक़तवर व्यक्ति जिसकी सेना पर लंबे समय से राजनीति में दख़ल देने, सरकारों को बनाने और गिराने जैसे आरोप लगते रहे हैं.
पहलगाम के बाद तनाव एक बार फिर बढ़ रहा है और जनरल आसिम मुनीर को इस परमाणु सशस्त्र क्षेत्र में एक केंद्रीय व्यक्ति के रूप में देखा जा रहा है.
तो पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर कौन हैं और क्या उन्हें चीज़ें प्रभावित करती हैं?
जनरल आसिम मुनीर लगभग साठ साल के हैं. वे एक स्कूल के प्रिंसिपल और एक धार्मिक विद्वान के बेटे हैं. वे 1986 में ऑफ़िसर्स ट्रेनिंग स्कूल मंगला में ट्रेनिंग पूरी करने के बाद पाकिस्तानी सेना में भर्ती हुए.
ट्रेनिंग के दौरान वे सर्वश्रेष्ठ कैडेट चुने गए थे. ट्रेनिंग स्कूल से स्नातक होने के बाद वो सबसे पहले पाकिस्तान की 23 फ्रंटियर फ़ोर्स रेजिमेंट में नियुक्त हुए थे.
अपनी लगभग चार दशक की सैन्य सेवा के दौरान जनरल आसिम मुनीर ने पाकिस्तान की संवेदनशील उत्तरी सीमाओं पर सेना की कमान संभाली.
उन्होंने पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसियों का नेतृत्व किया. इसके साथ ही सऊदी अरब के साथ रक्षा संबंधों को मज़बूत करने के लिए सऊदी अरब में भी काम किया.
उनके पास इस्लामाबाद की नेशनल डिफ़ेंस यूनिवर्सिटी से पब्लिक पॉलिसी और रणनीतिक सुरक्षा प्रबंधन में मास्टर्स डिग्री भी है. इसके अलावा उन्होंने जापान और मलेशिया के सैन्य संस्थानों में भी पढ़ाई की है.
मैंने पहली बार जनरल मुनीर को इस्लामाबाद में साल 2023 में देखा था. वो मंत्रियों, राजनयिकों, पत्रकारों और सैन्य अधिकारियों से भरे हुए एक होटल के हॉल में मौजूद थे.
सादा कपड़े पहने जनरल आसिम मुनीर शांत भाव से हॉल में मौजूद लोगों को देखते हुए आत्मविश्वास के साथ पोडियम की तरफ़ बढ़ रहे थे.
उन्होंने क़ुरान की आयत के साथ अपना भाषण शुरू किया. वे हाफ़िज़-ए-क़ुरान भी हैं.
पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान में ऐसे कम ही लोग हैं जिन्होंने इस्लाम की पवित्र क़ुरान को पूरी तरह याद किया हुआ है.
व्यक्तिगत रूप से जनरल मुनीर मृदुभाषी और विनम्र नज़र आते हैं. हालांकि मंच पर वो कठोर थे और उनकी नज़रों में एक पूर्व ख़ुफ़िया प्रमुख की सतर्कता थी. वो नज़र रखने, सुनने और इंतज़ार करने में प्रशिक्षित हैं. अब उनके शब्द पाकिस्तान के बाहर भी गूंज रहे हैं.
जनरल आसिम मुनीर साल 2022 में पाकिस्तान की सेना के प्रमुख बने थे.
उन्होंने ऐसे समय में देश की सेना की कमान संभाली थी जब पाकिस्तान राजनीतिक और आर्थिक संकट से गुज़र रहा था. पाकिस्तान की जनता सरकार और शासन से जुड़े मामलों में सेना के कथित दख़ल से हताश थी.
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान और उनके बीच सार्वजनिक मतभेदों की वजह से उनकी नियुक्ति कई महीनों की अटकलों के बाद ही संभव हुई थी.
जनरल आसिम मुनीर सिर्फ़ आठ महीनों तक पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई (इंटर सर्विसेज़ इंटेलिजेंस) के प्रमुख थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने उन्हें पद से हटा दिया था.
जब उन्हें आईएसआई के प्रमुख के पद से हटाया गया था तब कई विश्लेषकों का ये मानना था कि इमरान ख़ान का ये क़दम व्यक्तिगत और राजनीतिक था.
हालांकि दोनों ही पक्ष इसे नकारते रहे हैं. आईएसआई प्रमुख पद से हटाना इमरान ख़ान और जनरल मुनीर के रिश्तों में अहम पड़ाव साबित हुआ.
आज पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान भ्रष्टाचार के मामलों में जेल में बंद है और जनरल मुनीर पाकिस्तान के सबसे ताक़तवर व्यक्ति हैं.
कई विश्लेषक ये मानते हैं कि जनरल मुनीर अपनी शैली और मिजाज़ में पूर्ववर्ती सेना प्रमुख जनरल क़मर बाजवा से अलग हैं.
जनरल बाजवा सार्वजनिक रूप से अधिक सक्रिय नज़र आते थे. वो पर्दे के पीछे से भारत के साथ कूटनीतिक संबंधों के समर्थक थे.
2019 में जब पुलवामा हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ा तब जनरल क़मर बाजवा ने सावधानीपूर्वक हालात संभाल रहे थे.
बाजवा के काम करने के तरीक़े को 'बाजवा सिद्धांत' के रूप में जाना गया. इसके तहत जनरल बाजवा ने क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ-साथ पारंपरिक सुरक्षा प्राथमिकताओं को भी लेकर चलने पर ज़ोर दिया.
साल 2019 में जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आत्मघाती हमले में भारतीय सैनिकों की मौत के बाद भारत ने पाकिस्तान पर हवाई हमले किए थे.
जनरल बाजवा ने पाकिस्तान की प्रतिक्रिया का नेतृत्व किया लेकिन उन्होंने तनाव को और अधिक नहीं बढ़ने दिया. उन्होंने भारतीय पायलट अभिनंदन वर्धमान को वापस लौटाया और क्षेत्र को युद्ध में झोंकने से रोकने में मदद की.
सिंगापुर के आर राजारतनम स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ से जुड़े अब्दुल बासित कहते हैं, "बाजवा स्पष्ट थे."
भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रह चुके अब्दुल बासित कहते हैं, "जनरल बाजवा ने कूटनीतिक रास्ते खुले रखे थे. वे कश्मीर के अलावा अफ़ग़ानिस्तान और अमेरिकी सैनिकों की वापसी जैसे कई मोर्चों को व्यवहारिक रूप से संभाल रहे थे."
अब्दुल बासित कहते हैं कि जनरल आसिम मुनीर 'तुरंत प्रतिक्रिया देने के भारी दबाव में हैं.'
उन्होंने बीबीसी को बताया, "वे ऐसे समय में आए हैं जब उन्हें देश की आंतरिक सुरक्षा की स्थिति को मज़बूत करने के अधूरे एजेंडे को पूरा करना है. उनके सामने बढ़ता उग्रवाद, राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक संकट और क्षेत्रीय तनाव जैसी गंभीर समस्याएं हैं और उन पर तुरंत काम करने की ज़रूरत है. उनके पास अपने पूर्ववर्ती जनरल बाजवा की तरह दीर्घकालिक रणनीति बनाने का समय नहीं हैं."
अब्दुल बासित कहते हैं, "उन्हें आंतरिक रूप से और बाहरी स्तर पर भी त्वरित, सही समय पर और मज़बूत निर्णय लेने की ज़रूरत है."
आसिम मुनीर ने ऐसा क्यों कहा?
विश्लेषक मानते हैं कि कश्मीर का मुद्दा ऐसा है जिस पर कोई भी पाकिस्तानी सैन्य नेतृत्व नरमी बरतते हुए नहीं दिखना चाहेगा.
राजनीतिक और रक्षा मामलों के जानकार आमिर ज़िया कहते हैं, "कश्मीर पाकिस्तान के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है. यहां हर बच्चा स्कूल में कश्मीर के बारे में यही पढ़ता है. ये बिल्कुल आम राय है कि पाकिस्तान भारत को कश्मीर के मामले में कोई रियायत नहीं दे सकता है."
पिछले हफ़्ते पहलगाम में पर्यटकों पर हुआ हमला जम्मू-कश्मीर में आम नागरिकों पर पिछले दो दशकों में हुआ सबसे बड़ा हमला है.
भारत ने इसका आरोप पाकिस्तान पर लगाया है. पाकिस्तान ने इस आरोप का खंडन किया है.
अब ये आशंका है कि भारत इस मामले में सैन्य कार्रवाई कर सकता है.
जनरल आसिम मुनीर ने सेना प्रमुख के रूप में कमान संभालने के बाद से बहुत अधिक सार्वजनिक बयान नहीं दिए हैं. लेकिन 17 अप्रैल को दिए उनके एक भाषण ने बहुत अधिक ध्यान खींचा है.
इस्लामाबाद में पाकिस्तानी प्रवासियों के एक सम्मेलन में भाषण देते हुए जनरल आसिम मुनीर ने कहा, "हम धर्म से लेकर जीवनशैली तक हर मामले में हिंदुओं से अलग हैं."
इस भाषण में जनरल आसिम मुनीर ने कहा कि पाकिस्तान कश्मीर के लोगों को कभी अकेला नहीं छोड़ेगा.
पाकिस्तानी नेता इससे पहले भी इस तरह के भाषण देते रहे हैं और इस भाषण को भी ऐसा ही माना जाता अगर 22 अप्रैल को पहलगाम में हमला ना हुआ होता.
जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशिया मामलों पर नज़र रखने वाले विश्लेषक जोशुआ टी व्हाइट कहते हैं, "ये कोई सामान्य बयानबाज़ी नहीं थी. हालांकि इस भाषण की सामग्री पाकिस्तान की वैचारिक नैरेटिव जैसी ही है लेकिन लहज़ा, ख़ासकर हिंदू-मुसलमानों के बीच मतभेदों की सीधी बात करना, इस भाषण को ख़ास तौर पर भड़काऊ बनाता है."
वे कहते हैं, "पहलगाम हमले से कुछ दिन पहले दिए गए इस भाषण ने पाकिस्तान के संयम बरतने के दावों या पर्दे के पीछे से कूटनीति करने के प्रयास को गंभीर रूप से जटिल कर दिया है."
अब्दुल बासित भी मानते हैं कि इस बयान को जिस तरह से देखा गया वह नुक़सान पहुंचाने वाला है.
वे कहते हैं, "हो सकता है कि आसिम मुनीर उस लम्हे में भावनाओं में बह गए हों. उन्होंने ऐसी बातें कहीं जो निजी माहौल में तो शायद स्वीकार्य होतीं लेकिन एक सार्वजनिक मंच पर, सेना प्रमुख के रूप में, ये साफ़तौर पर टकराव की बातें लग रहीं थीं."
अब्दुल बासित कहते हैं, "कुछ लोगों को लगा कि ये बयान शक्ति प्रदर्शन हैं. ऐसा लग रहा था मानों वो घोषणा कर रहे हों कि सबकुछ उनके कंट्रोल में हैं और पाकिस्तान की कमान एक बार फिर से सेना के हाथ में है."
इस साल की शुरुआत में भी जनरल आसिम मुनीर ने एक भाषण दिया था. इसके आधार पर कुछ लोगों को लगा था कि जनरल मुनीर अपने पूर्ववर्ती सेना प्रमुखों की तुलना में सख़्त रुख अपनाएंगे.
5 फ़रवरी को कश्मीर एकजुटता दिवस के मौक़े पर मुज़फ़्फ़राबाद में बोलते हुए उन्होंने कहा था, "पाकिस्तान कश्मीर के लिए पहले ही तीन युद्ध लड़ चुका है और अगर ज़रूरत पड़ेगी तो दस और युद्ध लड़ने के लिए तैयार है."
पहलगाम हमले के बाद भारतीय अधिकारियों ने हमले और जनरल आसिम मुनीर के भाषण के बीच कथित संबंध की तरफ़ इशारा किया. इस बयान ने दोनों देशों के बीच पहले से मौजूद अविश्वास को और बढ़ाया है.
पाकिस्तान के भीतर जनरल आसिम मुनीर को ऐसे व्यक्ति के तौर पर देखा जा रहा है जो सोच समझ कर क़दम उठाने वाला और समझौता ना करने वाला है.
9 मई 2023 को पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी के बाद जब देश में उथल-पुथल हुई तब जनरल आसिम मुनीर ने इमरान ख़ान के समर्थकों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई शुरू की थी.
इसके बाद आम नागरिकों पर सैन्य क़ानूनों के तहत मुक़दमे शुरू हुए. पाकिस्तानी सेना के एक शीर्ष जनरल को समय से पहले रिटायर कर दिया गया और इमरान ख़ान के क़रीबी माने जाने वाले आईएसआई के पूर्व प्रमुख रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल फ़ैज़ हमीद को गिरफ़्तार कर लिया गया.
आलोचकों ने इसे इमरान ख़ान के समर्थकों का दमन बताया, लेकिन समर्थकों का कहना है कि ये क़दम उस सैन्य व्यवस्था को बहाल करने के प्रयास थे, जो जनरल बाजवा और जनरल मुनीर दोनों के लिए, जनता में बढ़ती आलोचना की वजह से प्रभावित हो चुकी थी.
जनरल आसिम मुनीर अपने पांच साल के कार्यकाल के दो साल पूरे कर चुके हैं. लेकिन उनकी विरासत की रूपरेखा तैयार होने लगी है.
भले ही भारत के साथ मौजूदा तनाव सैन्य टकराव में बदल जाए या कूटनीतिक रास्ते से इसका समाधान निकल जाए, भारत के साथ पाकिस्तान के संबंध इसी बात से निर्धारित होंगे कि जनरल मुनीर उन्हें किस दिशा में ले जाना चाहते हैं.
अब्दुल बासित को लगता है कि अगले कुछ सप्ताह निर्णायक होंगे.
अब्दुल बासित कहते हैं, "जनरल आसिम मुनीर इस संकट से कैसे निपटते हैं, इसी से एक सैनिक, एक पॉवर ब्रोकर के रूप में उनके रोल और क्षेत्र में पाकिस्तान की भूमिका परिभाषित होगी. फिलहाल ये निर्णय बहुत हद तक उनके हाथों में ही है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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