गली-मोहल्लों में आपने बच्चों को क्रिकेट खेलते देखा होगा, शायद आपने ख़ुद भी खेला हो.
इन बच्चों के अपने ही नियम होते हैं.
जो बल्ला लेकर आता है, वह कहता है कि मैं पहले बैटिंग लूँगा.
जिसकी विकेट होती है, अगर वह आउट हो जाता है, तो वह विकेट ही उखाड़ लेता है.
और साथ ही यह भी आरोप लगाता है कि अंपायर तुम्हारा अपना क़रीबी दोस्त है.
फिर बॉल किसी के घर चली जाती है, तो कोई बुज़ुर्ग उन्हें डाँट देता है.
और कहता है कि तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हें कोई तमीज़ नहीं सिखाई-'घर जाओ, मैं तुम्हें गेंद वापस नहीं करूँगा. खेल ख़त्म.'
न ख़ुशी और न ग़म
भारत-पाकिस्तान का खेल अब गेंद के खेल से आगे बढ़ गया है.
दोनों देशों के बीच लंबे समय बाद मैच खेला गया. भारत जैसे हराता है, पूरे जोश के साथ पाकिस्तान को हराया.
पाकिस्तानी टीम वैसे अपना मन करे, तो किसी भी टीम से हार जाती है. याद रहे कि यह टीम अमेरिका से भी हार चुकी है.
जैसे भारत को पाकिस्तान को हराने में बड़ा मज़ा आता है, उसी तरह पाकिस्तान को भारत से हार कर ज़्यादा ग़म महसूस होता है.
लेकिन एशिया कप के इस मैच के बाद न कोई ख़ुशी और न ही कोई ग़म.
बस यही शोर था- भारतीय टीम ने कहा है कि हम पाकिस्तानी खिलाड़ियों से हाथ नहीं मिलाएँगे.
मैच खेलने का फ़ैसला भारत के लिए जिन्होंने लिया होगा, हाथ न मिलाने का फ़ैसला भी उन्हीं का होगा.
भारतीय कप्तान ने जो कहा है, उसकी भी तैयारी की गई होगी.
लेकिन लोग तो अब पूछ रहे हैं कि अगर वे इतने ही आतंकवादी हैं, तो आप उनके साथ खेले ही क्यों?
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी पूछा है कि वे क्रिकेट खेलने गए हैं या ऑपरेशन सिंदूर करने.
भारत-पाकिस्तान के बारे में पूरी दुनिया जानती है कि यहाँ कई धर्म हैं और धर्म के नाम पर कई झगड़े और विवाद होते हैं.
लेकिन दोनों देशों में एक बड़ा धर्म है, जिसे सभी मानते हैं- और वह है क्रिकेट.
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फिर दोनों देशों के समझदार लोग यह भी समझाते रहते हैं कि क्रिकेट को राजनीति से नहीं जोड़ना चाहिए.
हम एक-दूसरे को पहले से ही टमाटर-प्याज़ नहीं बेच सकते हैं.
टमाटर और प्याज़ तो दूर की बात है, हम एक-दूसरे को जीवनरक्षक दवाइयाँ और किताबें भी नहीं बेच सकते.
क्रिकेट के मैदान में कभी-कभी लोग टकरा जाते हैं. लोग एक-दूसरे का राष्ट्रगान सुन लेते हैं. एक-दूसरे के क्रिकेटरों के साथ थोड़ा प्यार और थोड़ी मस्ती कर लेते हैं.
यह भी पता चल जाता है कि भारतीयों के सिर पर कोई सींग नहीं और पाकिस्तानियों के भी पंख नहीं होते.
सब अपनी-अपनी मर्ज़ी कर लेते हैं. लेकिन वो भी भोले बादशाह हैं, जो कहते हैं कि क्रिकेट एक धर्म है और इसमें राजनीति मत डालो.
या तो उन्हें धर्म का ज्ञान नहीं है या फिर राजनीति की समझ नहीं है. अब राजनीति धर्म की हो रही है और क्रिकेट से भी बड़ा धर्म पैसा है.
इंडिया क्रिकेट का दुनिया में सबसे बड़ा बाज़ार है. अगर भारत और पाकिस्तान के बीच मैच हो तो अंधाधुंध पैसा आता है.
अब भारत इस पैसे को हाथ से क्यों जाने दे. इसलिए मैच भी खेलते रहो और साथ ही हाथ न मिलाकर थोड़ा जंग का एहसास भी दिलाते रहो.
क्रिकेट के फ़ैंस भी ख़ुश और देशभक्त भी संतुष्ट.
बच्चों की स्ट्रीट क्रिकेट में जो यह बात सुनते थे, वो अब समझ में आ गई है.
वे कहते थे कि खेल ख़त्म और पैसा हजम.
रब्ब राखा...
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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