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ज़रूरी इंटेलिजेंस कश्मीरियों से ही मिलेगी, उन्हें साथ रखना बहुत अहम है: पूर्व रॉ प्रमुख अमरजीत सिंह दुलत

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BBC पूर्व रॉ चीफ अमरजीत सिंह दुलत

"पहलगाम में जो हुआ उसमें कश्मीरियों का कोई कसूर नहीं है. हाँ, वहाँ के कुछ लोग ज़रूर शामिल होंगे इस हमले और उसकी साज़िश में... लेकिन इसके लिए सभी कश्मीरियों को मार नहीं पड़नी चाहिए."

यह राय भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व प्रमुख और आईपीएस अफ़सर अमरजीत सिंह दुलत की है.

पिछले महीने पहलगाम हमले में 26 लोगों की जान गई. कई लोग ज़ख़्मी हुए. इस हमले के बाद भारत को क्या कदम उठाने चाहिए? ख़ासतौर से जम्मू-कश्मीर में भारत को क्या करना चाहिए? ऐसे कुछ सवाल हमने दुलत से पूछे और उनकी राय जाननी चाही.

image Getty Images पहलगाम के पास 22 अप्रैल को हमला हुआ था

साल 1940 में जन्मे दुलत, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में प्रधानमंत्री कार्यालय में बतौर जम्मू-कश्मीर मामलों के सलाहकार के रूप में भी काम कर चुके हैं. अपने करियर के शुरुआती सालों में उन्होंने जम्मू-कश्मीर में इंटेलिजेंस ब्यूरो का काम भी देखा है.

बीबीसी हिंदी से ख़ास बातचीत में उन्होंने पहलगाम में जो हुआ, उसे सुरक्षा और ख़ुफ़िया तंत्र की चूक बताया.

image Getty Images जम्मू-कश्मीर का पहलगाम

वे कहते हैं, "पहलगाम में जो हुआ, वह बहुत बुरा हुआ. मैं तो कहूँगा कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. मुझे लगता है कि पहलगाम हमला एक सिक्योरिटी फ़ेलियर है. वहाँ किसी क़िस्म की सिक्योरिटी थी ही नहीं. अगर प्रशासन को पता नहीं था और ऐसा हादसा हुआ, तो हाँ... यह इंटेलिजेंस फ़ेलियर भी है."

अपनी बात साफ़ करते हुए वे कहते हैं, "जहाँ हम इंटेलिजेंस या ख़ुफ़िया तंत्र की बात करते हैं, वहाँ हमें समझना होगा कि कश्मीर में जो सबसे ज़रूरी इंटेलिजेंस है, वह आपको कश्मीरियों से ही मिलेगी. तो कश्मीरियों को अपने साथ रखना बहुत ज़रूरी है."

"यह हमला क्यों हुआ, कैसे हुआ और जहाँ तक जवाबदेही की बात है... जो हुआ उसकी जाँच तो हो ही रही होगी. मैं किसी को दोषी नहीं कहना चाहता लेकिन जम्मू-कश्मीर में क़ानून व्यवस्था की ज़िम्मेदारी तो केंद्र सरकार के हाथ में है, न कि वहाँ के मुख्यमंत्री के हाथ में. तो केंद्र सरकार को देखना चाहिए. वहाँ के एलजी को देखना चाहिए, कहाँ से यह गड़बड़ हुई."

'पर्यटन का मतलब सब ठीक यह ग़लत धारणा' image Getty Images श्रीनगर की डल झील

पहलगाम के हमले से पहले जम्मू-कश्मीर में पर्यटकों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ.

सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, जहाँ 2020 में जम्मू-कश्मीर में 34 लाख से अधिक पर्यटक गए थे. वहीं साल 2023 के ख़त्म होते-होते ये आंकड़ा दो करोड़ 11 लाख के पार चला गया था.

वहीं जून 2024 तक पर्यटकों का आंकड़ा एक करोड़ आठ लाख को पार कर चुका था.

लेकिन क्या चरमपंथी हिंसा में कोई कमी आई थी?

साउथ एशिया टेररिज़्म के मुताबिक, साल 2012 में जम्मू-कश्मीर में 19 आम नागरिकों की मौत चरमपंथी हिंसा के कारण हुई. उसी साल 18 सुरक्षा कर्मी मारे गए थे और 84 चरमपंथी मारे गए थे.

image Getty Images कश्मीर में कुपवाड़ा इलाके में तैनात भारतीय सेना का जवान

उसके मुक़ाबले साल 2023 में 12 नागरिकों की मौत हुई, 33 सुरक्षा कर्मी मारे गए और 87 चरमपंथी मारे गए. पिछले साल 2024 में 31 आम नागरिक, 26 सुरक्षा कर्मी और 69 चरमपंथी मारे गए थे.

यानी हमले जारी थे.

लेकिन सरकार के में, जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में 'ज़ीरो टेरर' जैसी बातें भी आने लगीं. यह भी कहा गया कि 'आतंकवाद के ईको-सिस्टम को जम्मू-कश्मीर से लगभग ख़त्म कर दिया गया है.'

image Getty Images गृह मंत्री अमित शाह के विभाग ने 'ज़ीरो टेरर' की बात की थी

साथ ही साथ पर्यटक ऐसे इलाक़ों में भी जाने लगे जहाँ प्रशासन ने सुरक्षा के कोई इंतज़ाम नहीं किए थे. हालाँकि, पहलगाम हमले के बाद प्रशासन ने कई इलाक़ों में पर्यटकों के जाने पर लगा दी है.

दुलत से हमने पूछा कि वह इस मुद्दे को कैसे देखते हैं?

वह कहते हैं, "जम्मू-कश्मीर में पिछले दो सालों में ज़्यादा हमले हुए हैं. टूरिज़्म या पर्यटन एक बात है और नॉर्मल्सी दूसरी चीज़ है. जब भी हमने कहा कि जम्मू-कश्मीर में नॉर्मल्सी है, उस तरफ़ से हमले होते हैं.''

"जिस तरह पर्यटन बढ़ रहा था, लोग जहाँ मर्ज़ी वहाँ जा रहे थे, तो आप यह कह सकते हैं कि सरकार को ख़तरा पहले ही नज़र आ जाना चाहिए था. लेकिन इसमें एक और बात है. कश्मीर में आप जहाँ भी जाएँगे, आपको सिक्योरिटी नज़र आ ही जाती है. अब पहलगाम के बाहर, बैसरन घाटी में क्यों सुरक्षाकर्मी नहीं थे, मुझे नहीं मालूम."

'हिंदू-मुस्लिम मसला नहीं है' image Getty Images पहलगाम हमले के बाद कश्मीरी व्यापारियों ने, हिंसा के ख़िलाफ़, श्रीनगर में विरोध प्रदर्शन किए

हमले में मारे गए लोगों के परिजनों ने बताया कि पहलगाम में लोगों का धर्म पूछकर मारा गया.

दुलत से हमने पूछा कि हमले के पीछे किस क़िस्म की सोच नज़र आती है और भारत को किस क़िस्म का जवाब देना चाहिए?

दुलत कहते हैं, "पहलगाम में जो हुआ, वह हिंदू-मुस्लिम मुद्दा नहीं है. न जम्मू-कश्मीर में है और न ही भारत में कोई हिंदू-मुस्लिम मसला है. बल्कि यहाँ हिंदू-मुस्लिम एक हैं, यह मैसेज साफ़ तौर से जाना चाहिए. 1947 से आप देखें तो थोड़ा बहुत धार्मिक मामला रहा है. जम्मू-कश्मीर एक मुस्लिम बहुल राज्य रहा है लेकिन यहाँ कभी हिंदू-मुस्लिम मसला नहीं हुआ है.''

''जिसको हम कश्मीरियत कहते हैं, वह क्या है? उसके तहत यहाँ के हिंदू और मुस्लिम एक साथ चले हैं. आज ख़ासतौर से मैं कहूँगा कि कश्मीरियत को हमें खोना नहीं चाहिए. उसे ज़िंदा रखना बहुत ज़रूरी है."

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'नहीं मानता कि जंग होगी' image Getty Images नबीज़ा राज़ भारतीय नागरिक हैं जबकि उनके बच्चों के पास पाकिस्तान की नागरिकता हैं

पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान ने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ कई क़दम उठाए हैं. चाहे वह कूटनीति के मामले में हों या व्यापार या फिर लोगों के आने-जाने के बारे में हो.

समाचार एजेंसी के मुताबिक, पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सैन्य बलों को पूरी छूट दी है कि वह जो उचित कार्रवाई समझें, उस पर आगे बढ़ें.

वहीं, में भी चेतावनियाँ दी जा रही हैं कि भारत की किसी भी कार्रवाई का जवाब दिया जाएगा.

आगे क्या होने वाला है, दुलत क्या सोचते हैं?

दुलत बताते हैं, "डिप्लोमेसी या कूटनीति के नज़रिए से पाकिस्तान को भारत द्वारा एक मज़बूत मैसेज भेजा गया है. लोग यह भी कहते हैं कि दोनों देशों के बीच जंग होने वाली हैं. मेरा मानना है कि जंग सबसे आख़िरी और सबसे ग़लत विकल्प होगा. मैं नहीं मानता कि जंग होगी."

"आगे किसी न किसी तरीक़े से बातचीत होगी. 2021 में भारत और पाकिस्तान के बीच लाइन ऑफ़ कंट्रोल या नियंत्रण रेखा पर सीज़फ़ायर क्यों हुआ? क्योंकि उस समय पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान ख़ान और सेना अध्यक्ष जनरल बाजवा, दोनों चाहते थे कि रिश्ते बेहतर हों. वैसे ही आज लोग कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी और नवाज़ शरीफ़, जिनकी पार्टी पाकिस्तान में सत्ता पर काबिज़ है, उनके आपस में अच्छे रिश्ते हैं."

image Getty Images भारतीय वायु सेना का मिराज 2000 फाइटर प्लेन

उनकी राय में, "यह माहौल थोड़ा ख़राब है, शायद थोड़ा समय लगेगा. लेकिन बातचीत करने के कई तरीक़े होते हैं. पीछे से कर लीजिए. बैक चैनल बना कर बात कर लीजिए. मेरे हिसाब से तो बात कभी भी ख़त्म नहीं होती है. अगर आप बात न करना चाहें तो आपकी तरफ़ से कोई और बातचीत करेगा. जैसे कि सऊदी अरब या ईरान या यूएई वाले."

साथ ही दुलत यह भी कहते हैं, "…और अगर सर्जिकल स्ट्राइक करनी है या बालाकोट जैसा कुछ करना है तो करिए. ज़रूर करिए. मेरे हिसाब से, एक लिमिटेड मिलिट्री रिस्पांस, ठीक है."

देखने वाली बात यह भी है कि भारत ने अब तक पहलगाम हमले के संदर्भ में पाकिस्तान को सीधे तौर पर ज़िम्मेदार नहीं ठहराया है. ने यह ज़रूर कहा था कि पहलगाम हमले के तार सीमा पार से जुड़े हैं.

क्या प्रमाण देने से भारत को फ़ायदा होगा?

दुलत मानते हैं, "पहलगाम में जो हुआ वह पाकिस्तान की मदद के बिना नहीं हो सकता. पाकिस्तान पहले भी ऐसे कामों में शामिल रहा है, इसमें कोई शक नहीं है. हाँ, अगर भारत इसके प्रमाण देता है और दूसरे देश भी इसे मानें तो भारत के लिए अच्छा ही होगा."

दूसरी ओर, पाकिस्तान ने इन आरोपों को नकारा है और एक 'न्यूट्रल' जाँच में शामिल होने की कही है.

जम्मू-कश्मीर के लिए आगे का रास्ता? image Getty Images जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह

दुलत का मानना है कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा फिर देने का समय आ गया है.

वह ध्यान दिलाते हैं, "हमले के बाद, सारा जम्मू-कश्मीर एक होकर भारत के साथ खड़ा है. उन्हें राज्य का दर्जा वापस देने का यह अच्छा मौक़ा है. उससे संदेश जाएगा कि उन्होंने भारत का साथ दिया और उन्हें राज्य का दर्जा मिला. क्योंकि कुछ दिनों बाद यह सवाल उठेंगे. लोग पूछेंगे कि हम भारत के साथ थे लेकिन हमें क्या मिला?"

स्थानीय पुलिस और जाँच एजेंसियों का दावा है कि पहलगाम हमले में स्थानीय चरमपंथियों का भी हाथ है. इसकी वजह से काफ़ी लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया है और कईयों के घर दिए गए.

image Getty Images प्रशासन के मुताबिक यह ध्वस्त घर अहसान-उल-हक शेख के परिवार से संबंधित है

दुलत भी मानते हैं कि स्थानीय चरमपंथियों का शामिल होना कोई नई बात नहीं है.

वे कहते हैं, "जब मैंने यह सुना कि इस हमले को अंजाम देने में शायद कुछ लोकल लोग भी शामिल थे तो मुझे हैरानी नहीं हुई. दरअसल हमें यही पता लगाने की ज़रूरत है कि इन हमलों के पीछे कौन-कौन था. अकसर पता नहीं लगता लेकिन तब भी लोगों के घर उड़ा दिए जाते हैं. अब बहुत सारे लोगों को पकड़ लिया गया. हमले के लिए कुछ लोगों को पकड़ा गया जो इनकी मदद करते होंगे, वह तो ठीक है. ढाई सौ-तीन सौ लोगों को तो मत पकड़िये न. ऐसा करने से हमारी नाकामी नज़र आती है कि हमें पता नहीं चल पा रहा कि दोष किसका है."

image Getty Images जम्मू-कश्मीर में पिछले साल लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हुए थे

स्थानीय लोगों में बढ़ती मायूसी की वजह को दुलत ने समझाया, "पिछले साल चुनाव हुए. सरकार भी बनी तो वहाँ का नागरिक ख़ुश हुआ. उसे लगा, अब हमारी सरकार बन गई है. लेकिन धीरे-धीरे समझ में आया और वह कहने भी लगा कि यह तो हमारी सरकार है ही नहीं. वह कहने लगे कि अब भी जम्मू-कश्मीर को चलाने वाला तो दिल्ली (केंद्र सरकार) ही है."

"एक क़िस्म की मायूसी वहाँ फिर से आ रही है. आगे क्या होना चाहिए? मुझे लगता है कि सरकार को वहाँ के लोगों को साथ लेकर चलना चाहिए. वहाँ के लोग कभी दुखी नहीं होने चाहिए."

अपने तजुर्बे का हवाला देते हुए वे बताते हैं, "पिछले कुछ सालों में अगर आप कश्मीर जाएँ, बतौर पर्यटक नहीं बल्कि हालत समझने की मंशा से, तो नज़र आयेगा कि आर्टिकल 370 को हटाए जाने के बाद भारत में लोग ख़ुश हुए. लोगों ने कहा अच्छा हुआ, यह बीमारी हटी.''

''यह सब देख कर कश्मीर के लोगों ने कहना शुरू किया कि दिल्ली (केंद्र सरकार) तो हमेशा उनके ख़िलाफ़ ही था लेकिन हमें यह नहीं मालूम था कि हिंदुस्तान के लोग भी हमारे ख़िलाफ़ हैं. फिर धीरे-धीरे कश्मीरी चुप ही हो गया. इस ख़ामोशी का ख़्याल रखना चाहिए. ऐसी ख़ामोशी का होना अच्छी बात नहीं है."

image Getty Images अगस्त 2019 में आर्टिकल 370 के हटाए जाने को लेकर कश्मीर में विरोध प्रदर्शन हुए

जाते-जाते उन्होंने कहा कि भारत को कश्मीर के लोगों से बातचीत करते रहने की ज़रूरत है. वे कहते हैं, "टूरिज़्म से दूरियाँ नहीं मिटतीं, उसके लिए बातचीत का होना ज़रूरी है."

(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित)

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