Next Story
Newszop

वाई-फ़ाई और मोबाइल इंटरनेट क्या रात में बंद करके सोना चाहिए?

Send Push
Getty Images बढ़ते इस्तेमाल के साथ ही वाई-फ़ाई राउटर से निकलने वाले रेडिएशन को लेकर अब चर्चा भी शुरू हो गई है

"सो जा बेटे, रात के 12 बज रहे हैं, कब तक मोबाइल फ़ोन देखते रहोगे?"

"बस मम्मी, एक फ़िल्म ख़त्म कर रहा हूँ, दिन में वाई-फ़ाई नहीं मिलता ना!"

"इस वाई-फ़ाई का कुछ करना होगा!"

नोएडा में रहने वालीं सरिता और आठवीं क्लास में पढ़ने वाले उनके बेटे अक्षर के बीच ये बातचीत एक रूटीन की तरह है. हफ़्ते में तीन-चार रातों को यह हो ही जाती है.

कुछ लोग कहते हैं कि वाई-फ़ाई का मतलब 'वायरलेस फ़िडेलिटी' है, जैसे हाई-फ़ाई का मतलब 'हाई फ़िडेलिटी' होता है.

लेकिन इंडस्ट्री संगठन वाई-फ़ाई एलायंस का कहना है कि वाई-फ़ाई का कोई पूरा नाम नहीं है.

सीधी भाषा में कहें तो वाई-फ़ाई वह तकनीक है, जो हमें तारों और कनेक्टरों के जाल में फँसे बिना इंटरनेट से जोड़ती है.

इसके ज़रिए हम इंटरनेट से जानकारी हासिल कर सकते हैं और आपस में संपर्क कर सकते हैं.

बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

  • सुपर मारियो ब्रदर्स: एक प्लम्बर से वीडियो गेम का आइकन बनने तक
  • ऐश्वर्या राय को अदालत से राहत, मगर इस आदेश से क्या बदलेगा?
  • संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान और इसराइल आमने-सामने, वजह बना नेतन्याहू का वीडियो
वाई-फ़ाई ऑन रहने से सेहत पर कुछ असर होता है? image Getty Images देर रात तक काम करने या मनोरंजन के लिए इंटरनेट इस्तेमाल करने में अक्सर रातभर वाई-फ़ाई ऑन ही रह जाता है

वाई-फ़ाई कंप्यूटर और स्मार्टफ़ोन जैसे डिवाइस को बिना केबल के नेटवर्क से कनेक्ट कर देता है. ये एक वायरलेस राउटर का इस्तेमाल कर वायरलेस लोकल एरिया नेटवर्क (डब्ल्यूएलएएन) बनाता है.

मोबाइल फ़ोन की लत से हम सभी वाकिफ़ हैं और अब वाई-फ़ाई एक नई लत बनकर उभर रहा है. लेकिन इसका एक पहलू ऐसा भी है, जिसकी चर्चा कम होती थी, लेकिन अब ज़ोर पकड़ने लगी है.

अगर कोई देर रात तक मोबाइल फ़ोन, टैबलेट, कंप्यूटर या लैपटॉप पर मनोरंजन या काम की वजह से एक्टिव है, तो इसकी संभावना बढ़ जाती है कि वाई-फ़ाई राउटर भी रात में ऑन ही रह जाए.

तो क्या वाई-फ़ाई ऑन रखने से हमारी सेहत पर कुछ असर होता है या उसे बंद करने से हेल्थ के लिए कुछ फ़ायदे हो सकते हैं?

इस सवाल को और पैना करें तो क्या वाई-फ़ाई रात में ऑन रह जाना, इंसानी शरीर के न्यूरोलॉजिकल पक्षों या दिमाग़ को नुक़सान पहुँचा सकता है?

दिल्ली-एनसीआर की यशोदा मेडिसिटी में कंसल्टेंट (मिनीमली इनवेसिव न्यूरो सर्जरी) डॉक्टर दिव्य ज्योति से जब यह सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि सीधे तौर पर ऐसा नहीं कह सकते, क्योंकि साइंटिफ़िक तौर पर अभी तक ऐसा कुछ साबित नहीं हुआ है.

image BBC

डॉक्टर ने आगे कहा कि तार्किक रूप से देखें, तो ऐसा सोचा जा सकता है क्योंकि ब्रेन के इम्पलसेस, इलेक्ट्रिकल इम्पलसेस होते हैं, और वाई-फ़ाई या दूसरे अप्लायंसेज़ जो होते हैं, वो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फ़ील्ड (ईएमएफ़) पर निर्भर करते हैं.

"तो मुमकिन है कि ये दिमाग़ के इम्पलसेस के साथ दख़लअंदाज़ी करें, लेकिन अभी तक हमारे पास ये सोचने का कोई वैज्ञानिक कारण, स्पष्टीकरण या निष्कर्ष नहीं है. लेकिन तर्क तो यही कहता है कि हमें इससे जितना मुमकिन हो बचना चाहिए."

ये ब्रेन इम्पलसेस होते क्या हैं?

ब्रेन इम्पलसेस वो इलेक्ट्रोकेमिकल सिग्नल होते हैं, जिसकी मदद से न्यूरॉन कम्यूनिकेट करते हैं, और सूचना को प्रोसेस करते हैं. इन नर्व इम्पल्स को एक्शन पोटेंशियल भी कहा जाता है.

जो नर्व इन इम्पल्स को दिमाग़ तक ले जाती है, वो है सेंसरी नर्व. यह दिमाग़ तक मैसेज लेकर जाती है, तभी हम और आप स्पर्श, स्वाद, गंध महसूस कर पाते हैं, साथ ही देख पाते हैं.

  • न मोबाइल, न इंटरनेट - ऑनलाइन क्लास में कैसे पढ़ें बच्चे
  • ऑनलाइन दुनिया के जाल से अपने बच्चों को बचाने का तरीका जानिए
  • ऑनलाइन गेमिंग की लत में ऐसे फंस जाते हैं युवा, क्या है बाहर निकलने का रास्ता?
वाई-फ़ाई राउटर का रात और दिन में असर image Getty Images मन में कई बार यह सवाल आता है कि दिन और रात में रेडिएशन के असर में क्या अंतर है (सांकेतिक तस्वीर)

क्या वाई-फ़ाई राउटर से रात में बचना चाहिए और दिन के समय क्यों नहीं?

इस पर डॉक्टर दिव्य ज्योति ने बीबीसी हिन्दी से कहा, "दिन और रात में शरीर और उसकी गतिविधियों में अंतर होता है. रात के समय शरीर की वेव्स अलग तरह की होती हैं, जो स्लीप वेव्स होती हैं. रात को सबसे ज़रूरी है अच्छी नींद मिलना और वो स्लीप साइकिल से तय होता है."

उन्होंने कहा, "इसलिए कहा जाता है कि रात में इसे बंद कर देना चाहिए ताकि दिमाग़ को आराम मिले, साउंड स्लीप मिले, पूरी तरह रेस्ट मिले. लेकिन दिन के समय हमें काम करना होता है, तो नींद में दख़ल नहीं होती, लेकिन लॉजिक यही है कि ये एक्सपोज़र जितना कम हो, उतना अच्छा."

लेकिन क्या रात में वाई-फ़ाई से ही बचने की सलाह दी जाती है. मोबाइल फ़ोन का क्या, जो हम अक्सर अपने सिरहाने रखकर सोते हैं?

इस पर डॉक्टर का कहना है कि मोबाइल फ़ोन भी माइक्रोवेव पर आधारित होते हैं. ये भी एक तरह की रेडिएशन पैदा करते हैं, बस इनकी फ़्रीक्वेंसी अलग होती है.

तर्क के तौर पर देखें तो ये भी दख़ल दे सकती हैं. यहाँ तक कि अगर आप मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल न भी करें तो भी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स मौजूद रहती हैं.

डॉक्टर दिव्य ज्योति ने कहा, "बैकग्राउंड रेडिएशन की बात करें, तो उसकी तुलना में मोबाइल फ़ोन और वाई-फ़ाई से निकलने वाली रेडिएशन काफ़ी कम होती हैं. क्या इन दोनों से एक्सपोज़र बहुत ज़्यादा बढ़ जाता है तो जवाब है नहीं. इसकी तुलना में बैकग्राउंड रेडिएशन को लेकर हमारा एक्सपोज़र कहीं ज़्यादा है."

जानकारों का कहना है कि हमारे घर-दफ़्तर में हर तरह के एप्लायंसेज़ से रेडिएशन निकलती है. टीवी, फ्रिज से लेकर एसी तक. कोई भी इलेक्ट्रिक अप्लायंस हो, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स उससे जुड़े हैं ही.

कुछ विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि अगर ईएमएफ़ के ओवरएक्सपोज़र का डर है, तो उस कमरे में राउटर लगाने से बचना चाहिए, जिसमें आप सोते हों.

या फिर ऐसा मुमकिन ना हो तो सोने के पलंग से राउटर को ठीक-ठाक दूरी पर रख सकते हैं.

  • मेटावर्स दुनिया के कारोबार और अर्थव्यवस्था को कैसे बदलने जा रहा है?
  • ऑनलाइन न्यूज़ पर आने वाला क़ानून क्यों है चर्चा में?
  • ऑनलाइन गाने सुनने से पर्यावरण को कितना नुकसान?
क्या कहते हैं एक्सपर्ट? image Getty Images भारत में मोबाइल फ़ोन का इतिहास क़रीब 30 साल पुराना है

मेडिकल लाइन के अलावा टेक्नोलॉजी से ताल्लुक रखने वाले एक्सपर्ट से भी इस विषय पर हमने चर्चा की.

उनका कहना है कि इस बारे में सटीक रूप से कोई जानकारी सामने नहीं है, जिसके कारण कन्फ़्यूज़न ज़्यादा है.

ऐसे में स्टडी होनी चाहिए ताकि ये पता चल सके कि असल में इन वेव्स या ईएमएफ़ से कितना नुक़सान हो सकता है, और कैसे बचा जाना है.

टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट मोहम्मद फै़सल अली का कहना है कि ऐसी कोई स्टडी नहीं है, जो ये साबित कर सके कि हमें रात को वाई-फ़ाई बंद करना चाहिए, ताकि हमें अच्छी नींद आ सके.

"या फिर वाई-फ़ाई ऑन रखने से ये हमारे न्यूरोलॉजिकल या किसी दूसरे सिस्टम को इम्पैक्ट करता है. लेकिन ये तो कहा ही जा सकता है कि किसी भी तरह के रेडियो वेव को लेकर ओवरएक्सपोज़र लंबी मियाद में असर तो डाल ही सकता है. ये जेनेरिक बात है."

image BBC

अली ने बीबीसी हिन्दी से कहा, "साल 1995-96 से मोबाइल की शुरुआत मान लें, तो इसका कुल सफ़र 30 साल का है और पिछले 10 साल में भारत में मोबाइल और वाई-फ़ाई की ग्रोथ कहीं ज़्यादा हुई है."

"तो मुमकिन है कि आगे चलकर कोई स्टडी हो, जिसमें निष्कर्ष तक पहुँचा जा सके कि इन चीज़ों से ये-ये नुक़सान हो सकते हैं, इसलिए लिमिट में ही इस्तेमाल करने चाहिए. लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं है."

मोबाइल में अपना भी इंटरनेट होता है, क्या ये लॉजिक इन पर भी लागू होता है?

इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फ़ील्ड हों या रेडियो वेव हों, ऐसी फीलिंग है कि ओवरएक्सपोज़र ठीक नहीं होता. अब हमारे पास बेहतर आँकड़े हैं, ऐसे में अब इसे लेकर स्टडी ज़रूर होनी चाहिए. जितनी मेरी जानकारी और समझ है, इनसे इतना भी नुक़सान नहीं होता, जितना कई बार डर जताया जाता है."

जब जानकारों से ये पूछा गया कि रेडिएशन, वेव्स या ईएमएफ़ का शरीर पर क्या-क्या बुरा असर हो सकता है?

डॉक्टर दिव्य ज्योति ने कहा, "अगर सैद्धांतिक रूप से देखें तो ये साउंड स्लीप में दख़ल दे सकता है और अगर ऐसा होता है तो दिन के समय हमारी एफिशिएंसी पर असर होगा. कॉनसेंट्रेशन, फ़ोकस लेवल घटेगा. इसके अलावा रेडिएशन को शरीर में ट्यूमर बनने और बढ़ने से भी जोड़ा जाता है."

"वाई-फ़ाई के साथ-साथ मोबाइल फ़ोन से निकलने वाले रेडिएशन को लेकर भी चर्चा होती रहती है. भारत में कई सारे मोबाइल फ़ोन अब 5जी नेटवर्क पर दौड़ते हैं. क़रीब छह साल पहले जब ये यूरोप में आया था तो नई टेक्नोलॉजी से जुड़े हेल्थ रिस्क से जुड़े सवाल उठे थे."

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.

  • स्टारलिंक: क्या एलन मस्क की कंपनी के आने से भारत में बढ़ेगी इंटरनेट की स्पीड और सस्ता होगा इंटरनेट?
  • विवाह के लिए साथी की ऑनलाइन तलाश, धोखाधड़ी से बचने के लिए याद रखें ये 10 बातें
  • एलन मस्क और मुकेश अंबानी के बीच आख़िर किस बात की चल रही है 'लड़ाई'
  • भारत क्यों है इंटरनेट शटडाउन का ‘बादशाह’
image
Loving Newspoint? Download the app now