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खाड़ी देशों में अरबों डॉलर के समझौते, आख़िर ट्रंप चाहते क्या हैं?

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Win McNamee/Getty Images

रूसी क्रांतिकारी नेता व्लादिमीर लेनिन ने कहा था,"कई दशकों तक कुछ नहीं होता और फिर कुछ हफ़्तों में कई दशक बीत जाते हैं."

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लेकर पिछले सप्ताह जो कूटनीतिक बवंडर मचा, इससे पता चलता है कि लेनिन ने कुछ तो सही कहा था.

एक ऐसा अमेरिकी राष्ट्रपति जो 'अमेरिका फ़र्स्ट' की हामी भरता है, बीते कुछ दिनों में दुनिया के मंच पर अपनी छाप छोड़ने में व्यस्त है.

पिछले हफ़्ते ट्रंप ने खाड़ी के देशों से बड़े व्यापारिक सौदे किए, सीरिया पर लगे प्रतिबंध हटाए और एक अमेरिकी नागरिक की रिहाई के लिए हमास से बातचीत की.

इसके अलावा ट्रंप ने यमन में हूती लड़ाकों पर सैन्य हमलों को भी खत्म कराया है. उधर चीन से टैरिफ़ के मुद्दे पर डील की. ईरान के साथ परमाणु समझौते पर चुपचाप बातचीत जारी रखी है.

भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम कराने का भी दावा किया है.

ये सब चीज़ें इतनी तेज़ी से हुई हैं कि अमेरिका के सहयोगी और विरोधी दोनों ही इससे तालमेल बिठाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

लंदन स्थित एक राजदूत ने टिप्पणी की, "वाह...जो कुछ भी हो रहा है, उस पर नज़र रखना लगभग असंभव है."

इस व्यस्त सप्ताह में हमने अमेरिकी राष्ट्रपति की उभरती विदेश नीति के बारे में क्या समझा है?

सऊदी अरब की यात्रा image Getty Images सऊदी अरब के साथ ट्रंप ने 600 अरब डॉलर के निवेश का समझौता किया है

ट्रंप ने एक बार फिर खाड़ी देशों की यात्रा से अपने कार्यकाल की शुरुआत की.

रियाद में ट्रंप ने अपने भाषण में साफ कहा कि वह मध्य पूर्व में 'अराजकता नहीं बल्कि व्यापार' चाहते हैं. उन्होंने कहा कि वो इस इलाके को 'आतंकवाद नहीं बल्कि 'प्रौद्योगिकी का निर्यातक' बनता देखना चाहते हैं.

उनकी निगाह एक ऐसी दुनिया पर है जहां मुनाफ़े से शांति की राह निकलेगी.

राष्ट्रपति ट्रंप ने इस दौरान कई अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए.

बाद में व्हाइट हाउस ने बताया कि अमेरिका में 600 बिलियन डॉलर के निवेश का समझौते किया गया है.

लेकिन कुछ राजनयिकों ने निजी तौर पर कई समझौतों के महत्व पर सवाल उठाए हैं. उनका मानना है कि सौदों से ज़्यादा ये दिखावा अधिक था.

भारत-पाकिस्तान संघर्ष image Getty Images ट्रंप व्यापार को अपनी डिप्लोमेसी का सबसे अहम हथियार बनाते दिख रहे हैं.

रियाद में दिए गए ट्रंप के भाषण में जलवायु परिवर्तन सहयोग और खाड़ी के देशों में लोकतंत्र या मानवाधिकारों पर कोई चर्चा नहीं थी. यह ऐसा भाषण था जिसमें विचारधारा और मूल्यों की कोई बात नहीं थी.

इसके उलट उन्होंने अपने भाषण में अतीत में पश्चिमी देशों के हस्तक्षेप पर तीख़ी टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि ये देश अतीत में 'आपको यह उपदेश देते थे कि आप अपने देश को कैसे चलाएं."

अपने सामने बैठी अरब जगत की हस्तियों की तालियों के बीच ट्रंप ने कहा, "पश्चिम के हस्तक्षेप के कारण देश बर्बाद अधिक हुए और आबाद कम. बहुत सारे अमेरिकी राष्ट्रपति ये सोचते आए हैं कि उनका काम विदेशी नेताओं का ख़्याल रखना है."

ट्रंप ने कहा, "मेरा मानना है कि न्याय करना ईश्वर का काम है. मेरा काम अमेरिका की रक्षा करना है."

भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष के शुरू में अमेरिका ने हस्तक्षेप में अनिच्छा जाहिर की थी.

अतीत में अमेरिका ने अक्सर दोनों देशों के बीच हस्तक्षेप किया है लेकिन इस बार ट्रंप और व्हाइट हाउस शुरू में इस मामले को लेकर सतर्क दिखे.

उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने फ़ॉक्स न्यूज से कहा कि यह लड़ाई "मूलतः हमारा काम नहीं है... हम इन देशों को नियंत्रित नहीं कर सकते."

अंत में, वेंस और विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने दोनों परमाणु शक्तियों पर तनाव कम करने के लिए दबाव डाला. अन्य देशों ने भी ऐसा ही किया.

जब संघर्ष विराम पर सहमति बनी, तो ट्रंप ने दावा किया कि अमेरिकी कूटनीति ने इस समझौते में मध्यस्थता की है लेकिन भारतीय राजनयिकों ने इसे सिरे से खारिज कर दिया और जोर देकर कहा कि यह द्विपक्षीय युद्ध विराम है.

ट्रंप का बदलता रवैया image Getty Images प्रतिबंध हटाए जाने के बाद दमिश्क में सऊदी अरब और अमेरिका को धन्यवाद देते हुए एक बिलबोर्ड

अब अमेरिकी विदेश नीति ट्रंप के इर्द-गिर्द घूम रही है. पिछले सप्ताह ये बात स्पष्ट हो गई है.

मिसाल के तौर पर सीरिया के नए राष्ट्रपति और पूर्व जिहादी अहमद अल-शरा से मिलने और सीरिया पर लगे प्रतिबंधों को हटाने के राष्ट्रपति के असाधारण फैसले को ही लें.

इस घटनाक्रम से पता चला कि अगर विदेश नीति की डोर सिर्फ़ एक व्यक्ति के हाथ में हो तो क्या कुछ संभव है. यह एक निर्णायक और साहसिक कदम था और यह स्पष्ट रूप से राष्ट्रपति ट्रंप का व्यक्तिगत निर्णय था. इसे तुर्की और सऊदी अरब की भारी पैरवी के बाद लिया गया था.

कुछ राजनयिकों ने इसे रियाद में ट्रंप को मिली कूटनीतिक खुशामद और निवेश सौदों के बदले में लिया गया कदम माना. इस फ़ैसले ने न केवल क्षेत्र के कई लोगों को चौंकाया, बल्कि अमेरिकी सरकार के कई लोगों को भी हैरान कर दिया.

राजनयिकों ने कहा कि विदेश विभाग प्रतिबंधों को हटाने के लिए अनिच्छुक है, वह नई सीरियाई सरकार पर कुछ प्रभाव बनाए रखना चाहता है. राजनयिकों को अब भी डर है कि सीरिया अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और विदेशी लड़ाकों से निपटने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रहा.

राजनयिकों का कहना है कि व्हाइट हाउस में बिना किसी व्यापक आंतरिक चर्चा के निर्णय लेने का यह सिलसिला कोई साधारण बात नहीं है.

एक अहम बात ये है कि ट्रंप बार-बार अपना मन बदलते रहते हैं.

मसलन पिछले सप्ताह टैरिफ़ के मुद्दे पर चीन के साथ समझौते के निर्णय को ही लीजिए. कुछ सप्ताह पहले ट्रंप ने बीजिंग पर 145% टैरिफ लगाया था.

लगता है कि ये ट्रंप का अंदाज़ बन गया है - अधिकतम मांग करना, धमकी देना, बातचीत करना, समझौता करना और फिर जीत की घोषणा करना.

रूस-यूक्रेन युद्ध image Getty Images कुछ राजनयिक यूक्रेन के युद्ध में ट्रंप के दृष्टिकोण से चिंतित हैं. (2019 में पुतिन के साथ ट्रंप)

समस्या यह है कि 'सौदा करने की कला' टैरिफ़ जैसे आसानी से पलटे जा सकने वाले निर्णयों पर काम कर सकती है लेकिन युद्ध जैसी दीर्घकालिक कूटनीतिक उलझनों पर इसे लागू करना कठिन है.

रूस के यूक्रेन पर आक्रमण को ही लें.

इस मामले में ट्रंप की नीति अस्थिर रही है. पिछले सप्ताह भी वो अस्थिरता बरक़रार रही.

10 मई को ब्रिटेन, फ्रांस, पोलैंड और जर्मनी के नेताओं ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की के प्रति समर्थन जताने के लिए कीएव का दौरा किया.

फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने फोन पर ट्रंप के साथ एक सामूहिक कॉल में रूस से तत्काल 30 दिवसीय युद्धविराम पर सहमत नहीं होने पर कड़े प्रतिबंधों का सामना करने की बात की.

ट्रंप की नीति भी यही थी.

एक दिन पहले उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा था, "अगर युद्ध विराम का सम्मान नहीं किया गया, तो अमेरिका और उसके सहयोगी और प्रतिबंध लगाएंगे."

फिर रविवार को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सुझाव दिया कि गुरुवार को तुर्की में यूक्रेन और रूस के बीच सीधी बातचीत होनी चाहिए.

ट्रंप ने तुरंत इस पर सहमति जताई और एक दिन पहले यूरोपीय नेताओं के साथ जिस रणनीति पर राज़ी हुए थे, उससे पीछे हट गए.

उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "यूक्रेन को (वार्ता के लिए) तुरंत सहमत हो जाना चाहिए. मुझे संदेह होने लगा है कि यूक्रेन पुतिन के साथ कोई समझौता करेगा या नहीं."

इसके बाद गुरुवार को ट्रंप ने अपना रुख फिर बदलते हुए कहा कि समझौता तभी हो सकता है जब वह और पुतिन व्यक्तिगत रूप से मिलेंगे.

यह बात कुछ राजनयिकों को हैरान करती है.

एक राजनयिक ने मुझसे कहा, "क्या उन्हें वाकई नहीं मालूम कि यूक्रेन युद्ध के बारे में वो क्या करना चाहते हैं?"

इसराइल पर ट्रंप का रुख़ image Getty Images यह माना जा रहा है कि नेतन्याहू को ट्रंप नज़रअंदाज कर रहे हैं

बीते हफ़्ते किए गए दो फ़ैसले ट्रंप की नीतियों के बारे में उलझन को और बढ़ा गए.

पहला था यमन में हूती लड़ाकों पर लगभग दो महीने तक बमबारी करने के अभियान के बाद युद्ध विराम की घोषणा.

हूतियों पर बेहद महंगे हवाई हमलों के प्रभावी होने पर सवाल उठते रहे हैं. ट्रंप ने अपने अरब मेजबानों से बार-बार कहा है कि उन्हें युद्ध पसंद नहीं है.

दूसरा, ट्रंप के दूत स्टीव विटकॉफ ने ईरान के साथ परमाणु मुद्दे पर चौथे दौर की बातचीत की. अब दोनों पक्ष संकेत दे रहे हैं कि अब समझौता संभव है, हालांकि कुछ लोगों को डर है कि यह काफी मामूली हो सकता है.

अब ऐसा लग रहा है कि ईरान के ख़िलाफ़ संयुक्त अमेरिकी-इसराइली सैन्य कार्रवाई की बात खत्म हो गई है. इन दोनों मुद्दों में अमेरिका सीधे तौर पर इसराइल की इच्छा के ख़िलाफ़ काम करता दिख रहा है.

बिन्यामिन नेतन्याहू ट्रंप के शपथ ग्रहण के बाद ओवल ऑफिस में आमंत्रित किए जाने वाले भले ही पहले नेता थे, लेकिन हाल के दिनों से ऐसा लगता है कि उन्हें नज़रअंदाज किया गया है.

ट्रंप ने इसराइल का दौरा किए बिना मध्य पूर्व का दौरा किया.

उन्होंने इसराइल के समर्थन के बिना सीरिया पर प्रतिबंध हटा दिए. हूतियों के साथ युद्ध विराम की घोषणा भी उनके तेल अवीव हवाई अड्डे पर हमला करने के कुछ दिन बाद हुई.

राजनयिकों को नेतन्याहू की प्रतिक्रिया का इंतज़ार है. क्या नाराज़ नेतन्याहू ग़ज़ा में और अधिक आक्रामक हो जाएंगे?

'संघर्ष पर काबू पाने के लिए पूंजीवाद' image Getty Images अमेरिकी टैरिफ़ में कटौती के बावजूद वैश्विक बाज़ार में अस्थिरता का माहौल है

तो पिछले सप्ताह की कूटनीतिक हलचल के बाद कितना बदलाव आया है?

शायद जितना दिख रहा है, उससे कम.

ट्रंप के दौरे की सारी चकाचौंध के बावजूद, ग़ज़ा में लड़ाई और मानवीय संकट अब भी सुलझा नहीं है. इसके कारण एक नए इसराइली हमले की आशंका है.

ट्रंप का एक मुख्य लक्ष्य इसराइल और सऊदी अरब के बीच संबंधों को सामान्य बनाना है लेकिन अब भी ये दूर की कौड़ी बना हुआ है.

यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने की सभी चर्चाओं के बावजूद, इसके शांत होने की कोई संभावना नहीं है. पुतिन की महत्वाकांक्षा में कोई बदलाव नहीं हुआ है. ब्रिटेन और चीन के साथ अमेरिकी टैरिफ़ में कटौती के बावजूद भी वैश्विक बाजार अस्थिर है.

ट्रंप की वैश्विक विचारधारा हमें स्पष्ट दिखाई दे रही है. ये व्यापार पर आधारित है. इस विचारधारा में संघर्षों को पूंजीवाद के ज़रिए ख़त्म करने की कोशिश की जा रही है.

पर क्या ये महत्वाकांक्षा पूरी होगी? अगर कुछ हफ़्तों में दशकों का काम हो जाता है तो कई ऐसे भी हफ़्ते होते हैं जिनमें कुछ भी नहीं होता.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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