पिछले कुछ वर्षों में कोरोना महामारी ने वैश्विक स्तर पर तबाही मचाई, जिससे लाखों लोगों की जान गई। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर दिन बढ़ता वायु प्रदूषण कोरोना से भी अधिक घातक है? एक अध्ययन के अनुसार, हर साल लाखों लोग प्रदूषित हवा के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं। जर्नल लांसेट द्वारा किए गए एक शोध में यह खुलासा हुआ है कि विश्व की 99.999% जनसंख्या सालभर जहरीली हवा में सांस ले रही है, जबकि केवल 0.001% को ही स्वच्छ हवा नसीब हो रही है।
यदि आपसे पूछा जाए कि कितने लोग स्वच्छ हवा में सांस ले रहे हैं, तो आप शायद 10-20% का अनुमान लगाएंगे, लेकिन यह आंकड़ा गलत है। लांसेट के अध्ययन में यह स्पष्ट हुआ है कि केवल 0.001% लोग ही साफ हवा में सांस लेते हैं।
‘Population Exposure: A Machine Learning Modelling Study’ नामक इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 2000 से 2019 तक के डेटा का विश्लेषण किया। इसमें 65 देशों के 5,446 स्टेशनों के दैनिक PM 2.5 AQI स्तर का अध्ययन किया गया।
जब इन आंकड़ों की तुलना विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों से की गई, तो पता चला कि केवल 0.001% जनसंख्या ही सालभर स्वच्छ हवा में सांस लेती है। WHO के अनुसार, PM2.5 AQI का सामान्य स्तर 5 µg/m3 से अधिक नहीं होना चाहिए।
जो लोग PM 2.5 AQI के 100-200 स्तर पर रहते हैं, उनके लिए यह जानना जरूरी है कि AQI 100 से कम होना भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। PM2.5 इतना सूक्ष्म है कि यह आंखों, नाक और मुंह के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर सकता है, जिससे हार्ट अटैक, स्ट्रोक, अस्थमा और लंग कैंसर जैसी गंभीर बीमारियाँ हो सकती हैं।
लांसेट के अध्ययन में यह भी बताया गया है कि हर साल 66 लाख 70 हजार से अधिक लोग प्रदूषित हवा के कारण असमय मौत का शिकार होते हैं, जो कोरोना महामारी से होने वाली मौतों की संख्या से भी अधिक है।
WHO के आंकड़ों के अनुसार, कोरोना महामारी से हुई मौतों की संख्या इस प्रकार है: 2020 में 19,28,576, 2021 में 35,22,126, और 2022 में 12,46,298।
भारत में प्रदूषण की स्थिति बेहद गंभीर है। यहाँ PM 2.5 का औसत स्तर 58.1 है, जो WHO के मानकों से 11 गुना अधिक है। पिछले कई वर्षों में ऐसा कोई दिन नहीं गया जब हवा की गुणवत्ता WHO के मानकों के करीब भी पहुंची हो। गर्मियों की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन धुंध अभी भी आसमान में छाई हुई है।
प्रदूषण के कारण हर साल 66 लाख 70 हजार लोगों की असमय मौत होती है, जिनमें से 16 लाख भारतीय हैं। दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से 6 भारत में हैं। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र ने साफ हवा में सांस लेना मानवाधिकार घोषित किया।
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