भारत के प्रसिद्ध स्नैक ब्रांड बालाजी वेफर्स
भारतीय स्नैक उद्योग में हाल के दिनों में काफी हलचल देखने को मिल रही है। कुछ समय पहले ही हल्दीराम ने 10 अरब डॉलर से अधिक के मूल्यांकन पर एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सौदा किया था। अब, गुजरात के राजकोट से उभरा एक और घरेलू ब्रांड, बालाजी वेफर्स, ने भी वैश्विक निवेशकों का ध्यान आकर्षित किया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिकी प्राइवेट इक्विटी फर्म जनरल अटलांटिक, बालाजी वेफर्स में लगभग 4 अरब डॉलर (करीब 35,000 करोड़ रुपये) के मूल्यांकन पर एक महत्वपूर्ण हिस्सेदारी खरीदने की योजना बना रही है। यह सौदा न केवल बालाजी वेफर्स के लिए, बल्कि भारत के कई छोटे और क्षेत्रीय ब्रांडों के लिए भी एक बड़ी उपलब्धि है, जो चुपचाप अंतरराष्ट्रीय दिग्गजों को चुनौती दे रहे हैं।
4 अरब डॉलर का यह महत्वपूर्ण सौदा क्या है?एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी निवेशक जनरल अटलांटिक, बालाजी वेफर्स में 7% हिस्सेदारी खरीदने के लिए तैयार है। यह सौदा लगभग 2,500 करोड़ रुपये (लगभग $282 मिलियन) का हो सकता है। यदि यह डील सफल होती है, तो कंपनी का कुल मूल्यांकन लगभग 4 अरब डॉलर, यानी 35,000 करोड़ रुपये होगा। यह घरेलू उपभोक्ता क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण प्राइवेट इक्विटी सौदा होगा। बालाजी वेफर्स के संस्थापक और प्रबंध निदेशक चंदू विरानी ने भी जनरल अटलांटिक के साथ बातचीत की पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि सौदा लगभग तय है और इसकी औपचारिक घोषणा जल्द ही की जाएगी। श्री विरानी ने यह भी संकेत दिया कि भविष्य में कंपनी हिस्सेदारी बेचने के बजाय अपना आईपीओ (IPO) लाने पर विचार कर सकती है।
छोटे ब्रांड कैसे बड़े दिग्गजों को पछाड़ रहे हैं?यह सौदा भारत के फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (FMCG) क्षेत्र में एक नए ट्रेंड को दर्शाता है। लंबे समय से इस बाजार में हिंदुस्तान यूनिलीवर (HUL), नेस्ले और आईटीसी जैसी बड़ी कंपनियों का वर्चस्व था। लेकिन अब, छोटे और क्षेत्रीय ब्रांड इस परिदृश्य को बदल रहे हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि ये छोटे ब्रांड स्थानीय जरूरतों और पसंदों को बेहतर तरीके से समझते हैं। वे बड़े ब्रांडों की तुलना में कम कीमत पर उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद पेश कर पाते हैं। इसके अलावा, बिगबास्केट, ब्लिंकइट और अमेज़न जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ने इन क्षेत्रीय ब्रांडों को सीधे ग्राहकों तक पहुंचने का एक नया रास्ता प्रदान किया है।
कम विज्ञापन, अधिक लाभबालाजी वेफर्स की सफलता का रहस्य स्पष्ट है: कम लागत और उच्च दक्षता। कंपनी अपने उत्पादों को राष्ट्रीय ब्रांडों की तुलना में 20-30% सस्ता बेचती है। चंदू विरानी ने 1982 में राजकोट के एक सिनेमाघर में स्नैक्स और सैंडविच सप्लायर के रूप में अपने व्यवसाय की शुरुआत की थी। आज, बालाजी वेफर्स की सफलता का बड़ा श्रेय उनके अनूठे बिजनेस मॉडल को जाता है। कंपनी विज्ञापन पर बहुत कम खर्च करती है। जहां उद्योग का औसत खर्च राजस्व का 8-12% है, वहीं बालाजी अपने राजस्व का केवल 4% विज्ञापन पर खर्च करती है। इससे बची हुई राशि को वे उत्पादन और गुणवत्ता बनाए रखने में पुनः निवेश करते हैं। पिछले वित्त वर्ष में बालाजी ने 6,500 करोड़ रुपये की वार्षिक बिक्री और लगभग 1,000 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ कमाया था। गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्यों में आलू चिप्स और नमकीन के संगठित बाजार में उनकी लगभग 65% हिस्सेदारी है.
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