नई दिल्ली: पुरानी दिल्ली के बुलबुल खाना इलाके में एमसीडी द्वारा चलाए जा रहे उर्दू मीडियम स्कूलों की हालत काफी जर्जर है। चूना पत्थर की दीवारों का रंग उड़ रहा है। गेट तक पहुंचने वाली गली कीचड़ से सनी हुई है, जिन पर खुशमिजाज बच्चों की पेंटिंग्स लगी हैं। जो उम्मीदें जताती हैं। लेकिन 150 बच्चों को महज दो टीचर ही पढ़ा रहे हैं। स्कूल में बुनियादी सुविधाओं की भी कमी है।
दिल्ली के चांदनी चौक के बाजार सीता राम इलाके के उर्दू मीडियम स्कूल पुराने समय की याद दिलाते हैं, लेकिन दुखद तरीके से। यहां एक स्कूल में केवल दो शिक्षक नर्सरी से कक्षा पांच तक के 150 छात्रों को संभालते हैं। एक शिक्षक कागजी काम में व्यस्त रहता है, दूसरा कक्षाओं को संभालता है। बच्चों के पढ़ाने के लिए एक अवैतनिक स्वयंसेवक उनकी मदद करता है। छात्रों को दो सीलन भरे कमरों में बैठना पड़ता है। एक कमरे में नर्सरी से कक्षा दो तक के छात्र बैठते हैं, दूसरे में कक्षा तीन से पांच के छात्र बैठते हैं।
150 बच्चों को पढ़ा रहे दो टीचर
एक टीचर ने बतयाा, 'हम दो लोगों के लिए 150 बच्चों को संभालना काफी मुश्किल काम है, वो भी अलग-अलग कक्षाओं के।' वहीं दूसरी शिक्षक ने कहा, 'मुझे विशेष बच्चों की जरूरतों को भी देखना होता है। कभी-कभी, जब मैं ऑफिस के काम में व्यस्त होती हूं। तो वे बच्चे मेरे साथ ऑफिस में ही रहते हैं। उनके पास कोई विकल्प नहीं होता."
दिल्ली में उर्दू शिक्षकों की कमी एक बड़ी समस्या है। परीक्षाएं उर्दू में होती हैं, लेकिन वर्कशीट अक्सर हिंदी में आती हैं। एक शिक्षक ने बच्चों को पढ़ाने के की कठिनाओं के बारे में बताते हुए कहा, 'इंग्लिश के विपरीत, माता-पिता अपने बच्चों को उर्दू सिखाने के लिए कोई प्रयास नहीं करते हैं, इसलिए सारी जिम्मेदारी हम पर है।
स्कूल में बुनियादी सुविधा की कमी
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में एक और बुनियादी सुविधा की कमी का पता चला। स्कूल में केवल दो शौचालय हैं और टीचरों के लिए अलग शौचालय नहीं है। इसलिए टीचर हर बार शौचालय का इस्तेमाल करने से पहले शौचालय को साफ करते हैं।
यहां से कुछ दूरी पर, कूचा पंडित का सह-शिक्षा स्कूल भी ऐसी ही समस्याओं से जूझ रहा है। यहां पर भी 117 छात्रों को केवल दो शिक्षक पढ़ाते हैं। 62 वर्षीय रफी साहब जो इसी स्कूल में पढ़े हैं। उन्होंने बताया, यह स्कूल भारत-पाकिस्तान के विभाजन से पहले का है और खराब रखरखाव के कारण आज जर्जर हो गया है। 1919 में बने इस स्कूल के चारों ओर अब तीन मंजिला इमारतें बनी हुईं हैं।
पार्षद राफिया माहिर ने कहा, स्कूल की नींव लगातार खिसक रही है। हमें नहीं पता कि कब यह ढांचा गिर जाएगा। स्कूल को सुचारु रूप से चलाने के लिए दो शिक्षक ज्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं। उन्होंने दावा किया कि 2007 से पहले इलाके में 11 उर्दू स्कूल थे। अब केवल तीन हैं।
दिल्ली के चांदनी चौक के बाजार सीता राम इलाके के उर्दू मीडियम स्कूल पुराने समय की याद दिलाते हैं, लेकिन दुखद तरीके से। यहां एक स्कूल में केवल दो शिक्षक नर्सरी से कक्षा पांच तक के 150 छात्रों को संभालते हैं। एक शिक्षक कागजी काम में व्यस्त रहता है, दूसरा कक्षाओं को संभालता है। बच्चों के पढ़ाने के लिए एक अवैतनिक स्वयंसेवक उनकी मदद करता है। छात्रों को दो सीलन भरे कमरों में बैठना पड़ता है। एक कमरे में नर्सरी से कक्षा दो तक के छात्र बैठते हैं, दूसरे में कक्षा तीन से पांच के छात्र बैठते हैं।
150 बच्चों को पढ़ा रहे दो टीचर
एक टीचर ने बतयाा, 'हम दो लोगों के लिए 150 बच्चों को संभालना काफी मुश्किल काम है, वो भी अलग-अलग कक्षाओं के।' वहीं दूसरी शिक्षक ने कहा, 'मुझे विशेष बच्चों की जरूरतों को भी देखना होता है। कभी-कभी, जब मैं ऑफिस के काम में व्यस्त होती हूं। तो वे बच्चे मेरे साथ ऑफिस में ही रहते हैं। उनके पास कोई विकल्प नहीं होता."
दिल्ली में उर्दू शिक्षकों की कमी एक बड़ी समस्या है। परीक्षाएं उर्दू में होती हैं, लेकिन वर्कशीट अक्सर हिंदी में आती हैं। एक शिक्षक ने बच्चों को पढ़ाने के की कठिनाओं के बारे में बताते हुए कहा, 'इंग्लिश के विपरीत, माता-पिता अपने बच्चों को उर्दू सिखाने के लिए कोई प्रयास नहीं करते हैं, इसलिए सारी जिम्मेदारी हम पर है।
स्कूल में बुनियादी सुविधा की कमी
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में एक और बुनियादी सुविधा की कमी का पता चला। स्कूल में केवल दो शौचालय हैं और टीचरों के लिए अलग शौचालय नहीं है। इसलिए टीचर हर बार शौचालय का इस्तेमाल करने से पहले शौचालय को साफ करते हैं।
यहां से कुछ दूरी पर, कूचा पंडित का सह-शिक्षा स्कूल भी ऐसी ही समस्याओं से जूझ रहा है। यहां पर भी 117 छात्रों को केवल दो शिक्षक पढ़ाते हैं। 62 वर्षीय रफी साहब जो इसी स्कूल में पढ़े हैं। उन्होंने बताया, यह स्कूल भारत-पाकिस्तान के विभाजन से पहले का है और खराब रखरखाव के कारण आज जर्जर हो गया है। 1919 में बने इस स्कूल के चारों ओर अब तीन मंजिला इमारतें बनी हुईं हैं।
पार्षद राफिया माहिर ने कहा, स्कूल की नींव लगातार खिसक रही है। हमें नहीं पता कि कब यह ढांचा गिर जाएगा। स्कूल को सुचारु रूप से चलाने के लिए दो शिक्षक ज्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं। उन्होंने दावा किया कि 2007 से पहले इलाके में 11 उर्दू स्कूल थे। अब केवल तीन हैं।
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