नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर लगाए गए टैरिफ में 10% की कटौती का ऐलान किया है। 10% की इस मुरव्वत का मतलब है कि चीन पर पहले जो 57% टैरिफ था, उसे घटाकर 47% कर दिया गया। यह कटौती चीन के साथ रेयर अर्थ यानी दुर्लभ पृथ्वी खनिजों के निर्यात और सोयाबीन खरीद जैसे समझौतों के बाद हुई। भारत के संदर्भ में इसके कई तरह के मायने निकाले जा रहे हैं। माना जा रहा है कि यह अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धा को बढ़ाएगा। भारत पर 50% टैरिफ हैं। इसमें 25% अतिरिक्त टैरिफ है जो रूसी तेल आयात के कारण लगा है। रणनीतिक मामलों के विश्लेषक सुशांत सरीन ने डोनाल्ड ट्रंप की ओर से चीन पर लगाए गए टैरिफ में 10% की कटौती की घोषणा के बाद सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया दी। सरीन ने दावा किया कि भारत-अमेरिका की कहानी अब खत्म हो गई है। ट्रंप ने इसे जानबूझकर और सोच-समझकर खत्म किया है। उनका मानना है कि ट्रंप की झूठी तारीफों और अतिशयोक्ति से हम इतने मुग्ध हो गए कि यह नहीं देख पा रहे हैं कि कोई रणनीतिक संबंध बचा ही नहीं है। उन्होंने सलाह दी कि हमें इस रिश्ते को भूलकर आगे बढ़ जाना चाहिए।
सरीन की यह टिप्पणी तब आई जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग हाल में बुसान में मिले। इस मुलाकात में व्यापार तनाव को कम करने और रेयर अर्थ के फ्लो को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से समझौता हुआ। इस समझौते के तहत, चीन पर अमेरिकी टैरिफ को 57% से घटाकर 47% कर दिया गया यानी 10% की कटौती की गई। ट्रंप ने जोर देकर कहा कि बहुत सारे फैसले लिए गए। बहुत महत्वपूर्ण चीजों पर निष्कर्ष जल्द ही अपेक्षित हैं।
ट्रंप ने सीधा कर लिया है अपना उल्लू
ट्रंप ने कहा कि सब कुछ पर चर्चा नहीं हुई। लेकिन, उन्होंने फेंटानिल पर सहयोग, सोयाबीन की खरीद फिर से शुरू करने और रेयर अर्थ खनिजों के निर्यात जैसे प्रमुख परिणामों पर फोकस किया। उन्होंने कहा, 'हमने सहमति जताई कि राष्ट्रपति शी फेंटानिल को रोकने की कोशिश करेंगे, सोयाबीन खरीद तुरंत शुरू होगी और चीन पर टैरिफ 57% से घटाकर 47% कर दिया जाएगा।'
रेयर अर्थ के बारे में ट्रंप ने घोषणा की कि पूरा मुद्दा सुलझ गया है। चीनी निर्यात के लिए कोई और बाधा नहीं होगी। इससे अमेरिकी प्रौद्योगिकी और रक्षा फर्मों को राहत मिली है, जो सप्लाई चेन में व्यवधान को लेकर चिंतित थीं।
इस बैठक में कई महत्वपूर्ण समझौते हुए। इनमें चीन को अमेरिकी सोयाबीन की बिक्री फिर से शुरू करना भी शामिल है। ट्रंप ने कहा, 'कई बहुत महत्वपूर्ण बिंदुओं पर सहमति हुई और चीन तुरंत सोयाबीन खरीदना फिर से शुरू करेगा। यह हमारे किसानों के लिए एक बड़ी जीत है।'
इसके अलावा, दोनों नेताओं ने आपसी यात्राओं की योजना बनाई। इसमें ट्रंप ने कहा कि वह अप्रैल में चीन का दौरा करेंगे। उन्होंने कहा, 'मैं अप्रैल में चीन जाऊंगा और वह इसके कुछ समय बाद यहां आएंगे, चाहे वह फ्लोरिडा, पाम बीच या वाशिंगटन, डीसी में हो।'
ट्रंप ने साझा किया कि ताइवान का मुद्दा उनकी बातचीत के दौरान कभी नहीं उठा जो कि द्विपक्षीय विवादों में इसकी लगातार भूमिका को देखते हुए एक असामान्य बात थी।
ट्रंप ने बैठक के परिणाम को कुल मिलाकर शून्य से 10 के पैमाने पर '12' बताया और रिश्ते के महत्व पर जोर दिया। शी को 'महान नेता' कहा। रेयर अर्थ का समझौता एक वर्ष के लिए है। ट्रंप ने कहा कि यह एक साल का समझौता था जिसे बढ़ाया जाएगा।
पहले जैसे नहीं रहे अमेरिका के साथ रिश्ते
इस पर सरीन ने कहा कि भारतीयों को यह समझने की जरूरत है कि अमेरिका के साथ उनका रिश्ता अब पहले जैसा नहीं रहा। उन्होंने कहा कि ट्रंप की तारीफें सिर्फ दिखावा हैं। असल में कोई साझेदारी नहीं बची है। उन्होंने सलाह दी कि भारत को अब इस रिश्ते को भूलकर आगे बढ़ना चाहिए। आर्थिक संबंधों को बचाने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि पुरानी स्थिति में लौटना संभव नहीं है।
विश्लेषक का मानना है कि ट्रंप ने जानबूझकर भारत के साथ संबंधों को नुकसान पहुंचाया है। इस सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए और अपनी विदेश नीति को उसी के अनुसार एडजस्ट करना चाहिए। ट्रंप की बातों में आकर भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता खो रहा है।
यह घटनाक्रम वैश्विक कूटनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत देता है, जहां आर्थिक हित अक्सर रणनीतिक गठबंधनों पर हावी हो जाते हैं। भारत को अब अपनी विदेश नीति में नई दिशाएं तलाशनी होंगी ताकि वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सके।
क्या हो सकती हैं ट्रंप की मंशा?डोनाल्ड ट्रंप की ओर से चीन को टैरिफ में राहत देने और भारत के साथ रणनीतिक संबंधों को हाशिए पर धकेलने के पीछे कई व्यापारिक, आर्थिक और राजनीतिक कारण हो सकते हैं, जो सिर्फ भारत को अलग-थलग करने से कहीं अधिक जटिल हैं।
चीन रेयर अर्थ मिनरल्स का सबसे बड़ा उत्पादक है। ये खनिज अमेरिकी रक्षा, हाई-टेक और इलेक्ट्रिक वाहन उद्योगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। चीन ने पहले इन खनिजों के निर्यात पर नियंत्रण लगाने की धमकी दी थी। ट्रंप ने चीन के साथ समझौता किया ताकि इन महत्वपूर्ण खनिजों की सप्लाई बाधित न हो और अमेरिकी उद्योग सुचारु रूप से चलते रहें। टैरिफ कटौती इस समझौते का एक हिस्सा हो सकती है।
व्यापार युद्ध के दौरान चीन ने अमेरिकी सोयाबीन खरीदना बंद कर दिया था। इससे अमेरिकी किसानों को भारी नुकसान हुआ। टैरिफ में रियायत देने के बदले में ट्रंप ने चीन को अमेरिकी सोयाबीन की खरीद दोबारा शुरू करने के लिए राजी किया। यह कदम घरेलू राजनीति में ट्रंप को किसानों का समर्थन वापस दिलाने के लिए महत्वपूर्ण है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की यह एक पुरानी रणनीति है। चीन को रियायत देकर वह भारत को यह संदेश देना चाहते हैं कि अमेरिका से दोस्ती की कोई गारंटी नहीं है।
ट्रंप चाहते हैं कि भारत दबाव में आकर अमेरिका के मनमाफिक एक बड़ा व्यापार समझौता करे, जैसा जापान और यूरोजोन ने किया है। यह टैरिफ युद्ध उन्हें सौदेबाजी में 'अपर हैंड' देता है।
सरीन की यह टिप्पणी तब आई जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग हाल में बुसान में मिले। इस मुलाकात में व्यापार तनाव को कम करने और रेयर अर्थ के फ्लो को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से समझौता हुआ। इस समझौते के तहत, चीन पर अमेरिकी टैरिफ को 57% से घटाकर 47% कर दिया गया यानी 10% की कटौती की गई। ट्रंप ने जोर देकर कहा कि बहुत सारे फैसले लिए गए। बहुत महत्वपूर्ण चीजों पर निष्कर्ष जल्द ही अपेक्षित हैं।
ट्रंप ने सीधा कर लिया है अपना उल्लू
ट्रंप ने कहा कि सब कुछ पर चर्चा नहीं हुई। लेकिन, उन्होंने फेंटानिल पर सहयोग, सोयाबीन की खरीद फिर से शुरू करने और रेयर अर्थ खनिजों के निर्यात जैसे प्रमुख परिणामों पर फोकस किया। उन्होंने कहा, 'हमने सहमति जताई कि राष्ट्रपति शी फेंटानिल को रोकने की कोशिश करेंगे, सोयाबीन खरीद तुरंत शुरू होगी और चीन पर टैरिफ 57% से घटाकर 47% कर दिया जाएगा।'
रेयर अर्थ के बारे में ट्रंप ने घोषणा की कि पूरा मुद्दा सुलझ गया है। चीनी निर्यात के लिए कोई और बाधा नहीं होगी। इससे अमेरिकी प्रौद्योगिकी और रक्षा फर्मों को राहत मिली है, जो सप्लाई चेन में व्यवधान को लेकर चिंतित थीं।
इस बैठक में कई महत्वपूर्ण समझौते हुए। इनमें चीन को अमेरिकी सोयाबीन की बिक्री फिर से शुरू करना भी शामिल है। ट्रंप ने कहा, 'कई बहुत महत्वपूर्ण बिंदुओं पर सहमति हुई और चीन तुरंत सोयाबीन खरीदना फिर से शुरू करेगा। यह हमारे किसानों के लिए एक बड़ी जीत है।'
इसके अलावा, दोनों नेताओं ने आपसी यात्राओं की योजना बनाई। इसमें ट्रंप ने कहा कि वह अप्रैल में चीन का दौरा करेंगे। उन्होंने कहा, 'मैं अप्रैल में चीन जाऊंगा और वह इसके कुछ समय बाद यहां आएंगे, चाहे वह फ्लोरिडा, पाम बीच या वाशिंगटन, डीसी में हो।'
ट्रंप ने साझा किया कि ताइवान का मुद्दा उनकी बातचीत के दौरान कभी नहीं उठा जो कि द्विपक्षीय विवादों में इसकी लगातार भूमिका को देखते हुए एक असामान्य बात थी।
ट्रंप ने बैठक के परिणाम को कुल मिलाकर शून्य से 10 के पैमाने पर '12' बताया और रिश्ते के महत्व पर जोर दिया। शी को 'महान नेता' कहा। रेयर अर्थ का समझौता एक वर्ष के लिए है। ट्रंप ने कहा कि यह एक साल का समझौता था जिसे बढ़ाया जाएगा।
पहले जैसे नहीं रहे अमेरिका के साथ रिश्ते
इस पर सरीन ने कहा कि भारतीयों को यह समझने की जरूरत है कि अमेरिका के साथ उनका रिश्ता अब पहले जैसा नहीं रहा। उन्होंने कहा कि ट्रंप की तारीफें सिर्फ दिखावा हैं। असल में कोई साझेदारी नहीं बची है। उन्होंने सलाह दी कि भारत को अब इस रिश्ते को भूलकर आगे बढ़ना चाहिए। आर्थिक संबंधों को बचाने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि पुरानी स्थिति में लौटना संभव नहीं है।
What will it take for us to wake up to the fact that the US-India relationship is over? We are so taken in by Trumps fake praises and his superlatives that we are missing the fact that there is no strategic relationship left. We might still be able to rescue some part of the… https://t.co/IkltnkJksQ
— sushant sareen (@sushantsareen) October 30, 2025
विश्लेषक का मानना है कि ट्रंप ने जानबूझकर भारत के साथ संबंधों को नुकसान पहुंचाया है। इस सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए और अपनी विदेश नीति को उसी के अनुसार एडजस्ट करना चाहिए। ट्रंप की बातों में आकर भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता खो रहा है।
यह घटनाक्रम वैश्विक कूटनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत देता है, जहां आर्थिक हित अक्सर रणनीतिक गठबंधनों पर हावी हो जाते हैं। भारत को अब अपनी विदेश नीति में नई दिशाएं तलाशनी होंगी ताकि वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सके।
क्या हो सकती हैं ट्रंप की मंशा?डोनाल्ड ट्रंप की ओर से चीन को टैरिफ में राहत देने और भारत के साथ रणनीतिक संबंधों को हाशिए पर धकेलने के पीछे कई व्यापारिक, आर्थिक और राजनीतिक कारण हो सकते हैं, जो सिर्फ भारत को अलग-थलग करने से कहीं अधिक जटिल हैं।
चीन रेयर अर्थ मिनरल्स का सबसे बड़ा उत्पादक है। ये खनिज अमेरिकी रक्षा, हाई-टेक और इलेक्ट्रिक वाहन उद्योगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। चीन ने पहले इन खनिजों के निर्यात पर नियंत्रण लगाने की धमकी दी थी। ट्रंप ने चीन के साथ समझौता किया ताकि इन महत्वपूर्ण खनिजों की सप्लाई बाधित न हो और अमेरिकी उद्योग सुचारु रूप से चलते रहें। टैरिफ कटौती इस समझौते का एक हिस्सा हो सकती है।
व्यापार युद्ध के दौरान चीन ने अमेरिकी सोयाबीन खरीदना बंद कर दिया था। इससे अमेरिकी किसानों को भारी नुकसान हुआ। टैरिफ में रियायत देने के बदले में ट्रंप ने चीन को अमेरिकी सोयाबीन की खरीद दोबारा शुरू करने के लिए राजी किया। यह कदम घरेलू राजनीति में ट्रंप को किसानों का समर्थन वापस दिलाने के लिए महत्वपूर्ण है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की यह एक पुरानी रणनीति है। चीन को रियायत देकर वह भारत को यह संदेश देना चाहते हैं कि अमेरिका से दोस्ती की कोई गारंटी नहीं है।
ट्रंप चाहते हैं कि भारत दबाव में आकर अमेरिका के मनमाफिक एक बड़ा व्यापार समझौता करे, जैसा जापान और यूरोजोन ने किया है। यह टैरिफ युद्ध उन्हें सौदेबाजी में 'अपर हैंड' देता है।
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