बेंगलुरु: कर्नाटक के मौजूदा मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनके उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच चल रही खींचतान अब चरम पर पहुंचती दिख रही है। सिद्धारमैया ने बिहार विधानसभा चुनाव नतीजों के एक दिन बाद 15 नवंबर को दिल्ली दौरे की योजना बनाई है। ऐसे में कयासबाजी शुरू हो गई है कि अब सिद्धारमैया कौन सा दांव खेलेंगे? यूं तो कहा जा रहा है कि अपने दौरे में कर्नाटक के किसानों से लेकर दूसरे विषयों को लेकर पीएम मोदी से मिलेंगे, लेकिन उनके दौरे को सियासी तौर पर बेहद अहम माना जा रहा है।
कर्नाटक में गर्म है सियासत
2023 के कर्नाटक विधानसभा में जीत के बाद कांग्रेस ने सिद्धारमैया को सीएम और डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम बनाया था। सरकार के आधा कार्यकाल पूरा होने से पहले राज्य में नेतृत्व परिवर्तन, मंत्रिमंडल में फेरबदल, डीके शिवकुमार के नए सीएम होने की चर्चाएं जारी हैं। डीके शिवकुमार हालांकि खुद को पार्टी का वफादार सैनिक बता रहे हैं राष्ट्रीय अध्यक्ष का गृह राज्य होने के बाद भी कर्नाटक कांग्रेस में कलह और बयानबाजी थम नहीं रही है। कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन की तगड़ी अटकलों के बीच बयानबाजी जारी है। ऐसे में संभावना व्यक्त की जा रही है कि क्या दक्षिण इस राज्य में कोई सियासी तूफान आने वाला है? सिद्धारमैया बतौर सीएम 20 नवंबर को ढाई साल यानी 30 महीने पूरे करेंगे। सरकार के हाफ मार्क पर पहुंचने से पहले कर्नाटक में सियासत गर्म हो गई है।
सिद्धारमैया के पास क्या विकल्प?
सिद्धारमैया ने दो दिन पहले बेंगलुरु में पत्रकारों से बात करते हुए स्वीकार किया कि वह मंत्रिमंडल में फेरबदल के लिए पार्टी आलाकमान से अनुमति लेंगे और इस संबंध में आलाकमान का निर्णय अंतिम होगा। ऐसा माना जा रहा है कि दिल्ली दौरे में अगर आलाकमान मंत्रिमंडल में फेरबदल के लिए सहमत हो जाता है, तो इसका मतलब होगा कि वह शेष कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री होंगे। अगर ऐसा नहीं हाेता है तो सिद्धारमैया इसके लिए भी रणनीति बना ली है। उनके करीबियों की मानें तो पद छोड़ने के लिए सिद्धारमैया अपने उत्तराधिकारी के रूप में किसी दलित या पिछड़े वर्ग के मुख्यमंत्री का प्रस्ताव रख सकते हैं। कर्नाटक के राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि पार्टी आलाकमान में सिद्धारमैया को दिल्ली की राजनीति के लिए बुलाने पर विचार चल रहा है। सिद्धारमैया की इसमें रुचि नहीं है। इसका कारण यह है कि उन्हें न तो अंग्रेजी आती है और न ही हिंदी।
कहां फंस सकता है पेंच?
कर्नाटक की राजनीति पर नजर रखने वाले विश्लेषकों का कहना है कि सिद्धारमैया काफी अनुभवी नेता हैं। उन्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में किसी दलित या पिछड़े वर्ग के मुख्यमंत्री के प्रस्ताव पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का समर्थन मिल सकता है लेकिन उन्हें राहुल गांधी की एप्रूवल भी चाहिए होगा। पार्टी का एक बड़ा तबका डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री देखना चाहता है, क्याेंकि Gen Z में डीके बेहद लोकप्रिय हैं। सिद्धारमैया समर्थकों को उम्मीद है कि अगर आलाकमान नेतृत्व परिवर्तन की प्रस्ताव करता है तो दलित या पिछड़े वर्ग पर खरगे और राहुल गांधी की मंजूरी मिल जाएगी। ऐसे में आलाकमान का मन टटोलने के लिए खुद सिद्धारमैया ने मंत्रिमंडल में फेरबदल का दांव चला है। अगर राहुल गांधी कैबिनेट फेरबदल को मंजूरी देते हैं तो अप्रत्यक्ष रूप से यह माना जाएगा कि सिद्धारमैया बतौर सीएम कार्यकाल पूरा करेंगे।
कर्नाटक में गर्म है सियासत
2023 के कर्नाटक विधानसभा में जीत के बाद कांग्रेस ने सिद्धारमैया को सीएम और डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम बनाया था। सरकार के आधा कार्यकाल पूरा होने से पहले राज्य में नेतृत्व परिवर्तन, मंत्रिमंडल में फेरबदल, डीके शिवकुमार के नए सीएम होने की चर्चाएं जारी हैं। डीके शिवकुमार हालांकि खुद को पार्टी का वफादार सैनिक बता रहे हैं राष्ट्रीय अध्यक्ष का गृह राज्य होने के बाद भी कर्नाटक कांग्रेस में कलह और बयानबाजी थम नहीं रही है। कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन की तगड़ी अटकलों के बीच बयानबाजी जारी है। ऐसे में संभावना व्यक्त की जा रही है कि क्या दक्षिण इस राज्य में कोई सियासी तूफान आने वाला है? सिद्धारमैया बतौर सीएम 20 नवंबर को ढाई साल यानी 30 महीने पूरे करेंगे। सरकार के हाफ मार्क पर पहुंचने से पहले कर्नाटक में सियासत गर्म हो गई है।
सिद्धारमैया के पास क्या विकल्प?
सिद्धारमैया ने दो दिन पहले बेंगलुरु में पत्रकारों से बात करते हुए स्वीकार किया कि वह मंत्रिमंडल में फेरबदल के लिए पार्टी आलाकमान से अनुमति लेंगे और इस संबंध में आलाकमान का निर्णय अंतिम होगा। ऐसा माना जा रहा है कि दिल्ली दौरे में अगर आलाकमान मंत्रिमंडल में फेरबदल के लिए सहमत हो जाता है, तो इसका मतलब होगा कि वह शेष कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री होंगे। अगर ऐसा नहीं हाेता है तो सिद्धारमैया इसके लिए भी रणनीति बना ली है। उनके करीबियों की मानें तो पद छोड़ने के लिए सिद्धारमैया अपने उत्तराधिकारी के रूप में किसी दलित या पिछड़े वर्ग के मुख्यमंत्री का प्रस्ताव रख सकते हैं। कर्नाटक के राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि पार्टी आलाकमान में सिद्धारमैया को दिल्ली की राजनीति के लिए बुलाने पर विचार चल रहा है। सिद्धारमैया की इसमें रुचि नहीं है। इसका कारण यह है कि उन्हें न तो अंग्रेजी आती है और न ही हिंदी।
कहां फंस सकता है पेंच?
कर्नाटक की राजनीति पर नजर रखने वाले विश्लेषकों का कहना है कि सिद्धारमैया काफी अनुभवी नेता हैं। उन्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में किसी दलित या पिछड़े वर्ग के मुख्यमंत्री के प्रस्ताव पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का समर्थन मिल सकता है लेकिन उन्हें राहुल गांधी की एप्रूवल भी चाहिए होगा। पार्टी का एक बड़ा तबका डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री देखना चाहता है, क्याेंकि Gen Z में डीके बेहद लोकप्रिय हैं। सिद्धारमैया समर्थकों को उम्मीद है कि अगर आलाकमान नेतृत्व परिवर्तन की प्रस्ताव करता है तो दलित या पिछड़े वर्ग पर खरगे और राहुल गांधी की मंजूरी मिल जाएगी। ऐसे में आलाकमान का मन टटोलने के लिए खुद सिद्धारमैया ने मंत्रिमंडल में फेरबदल का दांव चला है। अगर राहुल गांधी कैबिनेट फेरबदल को मंजूरी देते हैं तो अप्रत्यक्ष रूप से यह माना जाएगा कि सिद्धारमैया बतौर सीएम कार्यकाल पूरा करेंगे।
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