पटना: बिहार में महिला वोटरों का समर्थन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए हमेशा से एक बड़ी ताकत रहा है। इसी समर्थन के दम पर उनकी सरकारें पहले चुनाव जीत चुकी हैं और इस बार भी जेडीयू-बीजेपी को महिला वोटरों पर पूरा भरोसा है। एनडीए के जवाब में महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने भी महिलाओं को सशक्त करने के वादे किए हैं। वे महिलाओं को लुभाने वाली योजनाएं लाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उनके पिता लालू प्रसाद यादव का इतिहास महिला नेतृत्व विरोधी रहा है। लालू महिलाओं के हितों के खिलाफ माने जाते रहे हैं। आरजेडी की महिला विरोध की विरासत तेजस्वी यादव का राह में रोड़ा बन रही है।   
   
सन 1990 के दशक के अंत में लालू यादव ने महिलाओं के लिए आरक्षण विधेयक का विरोध किया था। लालू यादव के अलावा समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव और अन्य कुछ नेताओं ने महिला आरक्षण बिल को समर्थन नहीं दिया था जिससे यह विधेयक संसद में अटक गया था। उस समय लालू यादव के पास सिर्फ 37 सांसद थे, लेकिन उन्होंने कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों के सांसदों को भी अपने साथ मिलाकर इस विधेयक को रोकने का रास्ता निकाल लिया था। जबकि कांग्रेस नेता सोनिया गांधी पूरी तरह इस विधेयक के पक्ष में खड़ी थीं।
     
नीतीश ने दो दशकों में मजबूत जनाधार बना लिया तेजस्वी यादव भले ही आरजेडी के इस महिला विरोधी रुख में बदवाल लाने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन अब देर हो चुकी है। इस बीच नीतीश कुमार ने पिछले दो दशकों में सत्ता में रहते हुए महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के साथ मिलकर काम करते हुए उन्हें इस मिशन में केंद्र सरकार का भी साथ मिला है।
     
पटना में 31 अक्टूबर को जारी हुए एनडीए के संयुक्त घोषणापत्र में इस बात का सबूत मिलता है। इसमें मुख्यमंत्री की महिला रोजगार योजना का जिक्र है। इस योजना के तहत महिलाओं को 2 लाख रुपये तक की आर्थिक मदद दी जाएगी। साथ ही एक करोड़ महिलाओं को 'लखपति दीदी' बनाने का वादा भी किया गया है। 'लखपति दीदी योजना' की शुरुआत 15 अगस्त 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। इसका मकसद महिलाओं, खासकर स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं का जीवन स्तर सुधारना है।
   
महिला आरक्षण लागू करने का श्रेय एनडीए को इससे पहले नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने ही संसद में 'संविधान (108वां संशोधन) विधेयक, 2023' यानी महिला आरक्षण विधेयक पारित करवाया था। यह विधेयक 1998 से अटका हुआ था। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली तत्कालीन एनडीए सरकार महिलाओं के लिए आरक्षण विधेयक को संसद में पारित नहीं करवा पाई थी। तब लालू यादव और मुलायम सिंह यादव जैसे नेताओं ने इसका कड़ा विरोध किया था।
   
लोकसभा में इस विधेयक पर काफी हंगामा हुआ था। आरजेडी के सांसदों ने विधेयक की प्रतियां फाड़ दी थीं। उस समय शरद यादव, जो जनता दल के सांसद थे, ने भी लालू और मुलायम का साथ दिया था। सन 1997 में शरद यादव ने महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करते हुए विवादास्पद बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि इसका फायदा "पारकटी औरतों" (छोटे बाल वाली महिलाओं) को होगा। वे बिल में जातिगत आरक्षण की मांग कर रहे थे। हालांकि बाद में जब वे जनता दल यूनाइटेड में शामिल हुए, तो नीतीश कुमार ने उन्हें समझाया कि पहले विधेयक को जैसे है वैसे पारित होने दें, फिर 'कोटा के अंदर कोटा' (आरक्षण के भीतर आरक्षण) का मुद्दा उठाएं।
   
शरद यादव का रुख बदलने में सफल हुए थे नीतीश मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बाद में राज्य की पंचायतों में समाज के सभी वर्गों की महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की। कहा जाता है कि इस फैसले से बाद में शरद यादव का रुख भी बदल गया। नीतीश कुमार हमेशा कहते रहे कि यह एकमात्र ऐसा मुद्दा था जिस पर वे दोनों (नीतीश और शरद) असहमत थे, जिसे वे "ईमानदार मतभेद" कहते थे।
   
बिहार में अपने लंबे कार्यकाल के दौरान नीतीश कुमार ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएं शुरू कीं। इनमें पंचायतों में 50 प्रतिशत आरक्षण, सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण, स्कूली लड़कियों के लिए "साइकिल योजना" और जीविका जैसे स्वयं सहायता समूहों की शुरुआत शामिल है।
   
इतिहास को बदलना संभव नहींमहिलाओं के हित की योजनाओं ने नीतीश को महिला मतदाताओं के बीच मजबूत समर्थन हासिल करने में मदद की। तेजस्वी यादव ने भले ही बिहार की करीब चार लाख जीविका दीदियों और संविदा कर्मचारियों को नौकरी में स्थायी करने, लड़कियों की शिक्षा और रोजगार सुनिश्चित करने, महिलाओं को घर, पर्याप्त राशन और नियमित आर्थिक मदद देने का वादा किया हो, लेकिन उन्हें अभी भी उस इतिहास से पार पाना है जो महिला विरोधी रहा है। उनके प्रयासों का नतीजा 14 नवंबर को आने वाले जनादेश से पता चलेगा कि वे इसमें सफल हो पाते हैं या नहीं।
  
सन 1990 के दशक के अंत में लालू यादव ने महिलाओं के लिए आरक्षण विधेयक का विरोध किया था। लालू यादव के अलावा समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव और अन्य कुछ नेताओं ने महिला आरक्षण बिल को समर्थन नहीं दिया था जिससे यह विधेयक संसद में अटक गया था। उस समय लालू यादव के पास सिर्फ 37 सांसद थे, लेकिन उन्होंने कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों के सांसदों को भी अपने साथ मिलाकर इस विधेयक को रोकने का रास्ता निकाल लिया था। जबकि कांग्रेस नेता सोनिया गांधी पूरी तरह इस विधेयक के पक्ष में खड़ी थीं।
नीतीश ने दो दशकों में मजबूत जनाधार बना लिया तेजस्वी यादव भले ही आरजेडी के इस महिला विरोधी रुख में बदवाल लाने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन अब देर हो चुकी है। इस बीच नीतीश कुमार ने पिछले दो दशकों में सत्ता में रहते हुए महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के साथ मिलकर काम करते हुए उन्हें इस मिशन में केंद्र सरकार का भी साथ मिला है।
पटना में 31 अक्टूबर को जारी हुए एनडीए के संयुक्त घोषणापत्र में इस बात का सबूत मिलता है। इसमें मुख्यमंत्री की महिला रोजगार योजना का जिक्र है। इस योजना के तहत महिलाओं को 2 लाख रुपये तक की आर्थिक मदद दी जाएगी। साथ ही एक करोड़ महिलाओं को 'लखपति दीदी' बनाने का वादा भी किया गया है। 'लखपति दीदी योजना' की शुरुआत 15 अगस्त 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। इसका मकसद महिलाओं, खासकर स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं का जीवन स्तर सुधारना है।
महिला आरक्षण लागू करने का श्रेय एनडीए को इससे पहले नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने ही संसद में 'संविधान (108वां संशोधन) विधेयक, 2023' यानी महिला आरक्षण विधेयक पारित करवाया था। यह विधेयक 1998 से अटका हुआ था। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली तत्कालीन एनडीए सरकार महिलाओं के लिए आरक्षण विधेयक को संसद में पारित नहीं करवा पाई थी। तब लालू यादव और मुलायम सिंह यादव जैसे नेताओं ने इसका कड़ा विरोध किया था।
लोकसभा में इस विधेयक पर काफी हंगामा हुआ था। आरजेडी के सांसदों ने विधेयक की प्रतियां फाड़ दी थीं। उस समय शरद यादव, जो जनता दल के सांसद थे, ने भी लालू और मुलायम का साथ दिया था। सन 1997 में शरद यादव ने महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करते हुए विवादास्पद बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि इसका फायदा "पारकटी औरतों" (छोटे बाल वाली महिलाओं) को होगा। वे बिल में जातिगत आरक्षण की मांग कर रहे थे। हालांकि बाद में जब वे जनता दल यूनाइटेड में शामिल हुए, तो नीतीश कुमार ने उन्हें समझाया कि पहले विधेयक को जैसे है वैसे पारित होने दें, फिर 'कोटा के अंदर कोटा' (आरक्षण के भीतर आरक्षण) का मुद्दा उठाएं।
शरद यादव का रुख बदलने में सफल हुए थे नीतीश मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बाद में राज्य की पंचायतों में समाज के सभी वर्गों की महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की। कहा जाता है कि इस फैसले से बाद में शरद यादव का रुख भी बदल गया। नीतीश कुमार हमेशा कहते रहे कि यह एकमात्र ऐसा मुद्दा था जिस पर वे दोनों (नीतीश और शरद) असहमत थे, जिसे वे "ईमानदार मतभेद" कहते थे।
बिहार में अपने लंबे कार्यकाल के दौरान नीतीश कुमार ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएं शुरू कीं। इनमें पंचायतों में 50 प्रतिशत आरक्षण, सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण, स्कूली लड़कियों के लिए "साइकिल योजना" और जीविका जैसे स्वयं सहायता समूहों की शुरुआत शामिल है।
इतिहास को बदलना संभव नहींमहिलाओं के हित की योजनाओं ने नीतीश को महिला मतदाताओं के बीच मजबूत समर्थन हासिल करने में मदद की। तेजस्वी यादव ने भले ही बिहार की करीब चार लाख जीविका दीदियों और संविदा कर्मचारियों को नौकरी में स्थायी करने, लड़कियों की शिक्षा और रोजगार सुनिश्चित करने, महिलाओं को घर, पर्याप्त राशन और नियमित आर्थिक मदद देने का वादा किया हो, लेकिन उन्हें अभी भी उस इतिहास से पार पाना है जो महिला विरोधी रहा है। उनके प्रयासों का नतीजा 14 नवंबर को आने वाले जनादेश से पता चलेगा कि वे इसमें सफल हो पाते हैं या नहीं।
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