पटना: मोकामा में दुलारचंद यादव की हत्या के बाद बिहार की चुनावी राजनीति में खलबली मच गयी है। कई समीकरण बनते बिगड़ते दिख रहे हैं। मोकामा और उसके आसपास के इलाके में तनाव का माहौल है। दुलारचंद यादव के स्वजातीय इस घटना के बाद गोलबंद हो रहे हैं। अगर यादवों की गोलबंदी हुई तो इसकी प्रतिक्रिया में भूमिहार भी एकजुट हो जाएंगे। ऐसे में राजद के भूमिहार प्रत्याशियों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। जिन सीटों पर भूमिहार बनाम यादव की लड़ाई है, वहां का चुनावी परिदृश्य भी बदल जाएगा।
मोकामा समेत 5 विधानसभा सीटों पर असर
मोकामा में राजद ने भूमिहार जाति की वीणा देवी (सूरजभान सिंह की पत्नी) को ही अपना उम्मीदवार बनाया है। मोकामा के अलावा बाढ़, लखीसराय, सूर्यगढ़ा, बरबीघा, वारिसलीगंज विधानसभा सीटों पर अब नये समीकरण बनने के आसार हैं। इसके पहले भी अनंत सिंह मोकामा में अग्नि परीक्षा से गुजरे हैं, लेकिन उनके लिए लालू यादव, नीतीश कुमार, भाजपा, लोजपा कोई फैक्टर नहीं।
2015 में अनंत सिंह जेल में बंद थे। लालू-नीतीश एक हो कर उनका विरोध कर रहे थे। लोजपा-भाजपा भी विरोध कर रही थी। लेकिन इसके बाद भी बिना एक दिन प्रचार किये, अनंत सिंह चुनाव जीत गये थे। इस बार भूमिहार और एकजुट हो कर उनका समर्थन कर सकते हैं।
अनंत सिंह को मिल कर भी नहीं हरा पाए लालू-नीतीशमोकामा विधानसभा क्षेत्र भूमिहार बहुल है। पिछले 50 साल से इस सीट पर भूमिहार प्रत्याशी ही चुनाव जीतते आ रहे हैं। चाहे उनका दल कोई भी हो। इस क्षेत्र में यादव, धानुक, कोइरी, कुर्मी जाति भी अच्छी तादाद में हैं। भूमिहार वोटर अनंत सिंह के कट्टर समर्थक माने जाते हैं। लालू यादव के विरोध के बाद भी अनंत सिंह चुनाव जीतते रहे हैं। अभी तक अनंत सिंह पर यादवों का विरोध कोई असर नहीं डाल सका है।
2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और लालू यादव एक हो गए थे। इस चुनाव में अनंत सिंह निर्दलीय खड़ा थे। लालू- नीतीश ने अपने गठबंधन से यहां भूमिहार नेता नीरज कुमार को मैदान में उतारा था। महागठबंधन ये सोच रहा था कि यादव (लालू यादव), कुर्मी (नीतीश कुमार) और भूमिहार (नीरज कुमार) की त्रवेणी में अनंत सिंह तिनके की तरह बह जाएंगे। लेकिन सारे अनुमान धरे के धरे रह गये। अनंत सिंह, लालू-नीतीश के संयुक्त विरोध के बाद भी करीब 18 हजार वोटों से जीत गये। वह भी बिना एक दिन प्रचार किए।
अनंत सिंह के आगे भाजपा-लोजपा भी बेअसर
2015 का चुनाव अनंत सिंह की सियासी ताकत का असल सबूत है। इस चुनाव में भाजपा और लोजपा का गठबंधन था। लोजपा ने इस सीट पर सूरजभान सिंह के भाई कन्हैया सिंह को मैदान में उतारा था। कन्हैया सिंह को भूमिहार वोट, लोजपा के पासवान वोट और भाजपा के आधार वोट मिलने की आशा थी। लेकिन उनकी भी आशा पूरी नहीं हुई। कन्हैया सिंह को केवल 15 हजार 472 वोट ही मिले। यानी मोकामा में भाजपा और लोजपा भी कोई फैक्टर नहीं हैं।
अनंत सिंह रेयरेस्ट ऑफ रेयर पॉलिटिशियन
अनंत सिंह की चुनावी जीत बिहार की राजनीति के लिए एक आश्चर्यजनक घटना है। राजनीति पंडित भी इसका सटीक विश्लेषण नहीं कर सकते। आज के दौर में क्या यादव, कुर्मी, पासवान जैसी मजबूत जातियों के विरोध को झेल कर कोई चुनाव जीत सकता है ? लेकिन अनंत सिंह पर यह सवाल लागू नहीं होता। वे जीत जाते हैं। अनंत सिंह के सामने भाजपा का सवर्ण और वैश्य कार्ड भी फेल हो जाता है। कोई ऐसा व्यक्ति जो बिहार की प्रचलित जातीय समीकरण और विचारवाद से परे हो, बेअसर हो, उसे रेयरेस्ट ऑफ रेयर पॉलिटिशियन ही माना जाएगा। लेकिन ऐसी असाधारण क्षमता रखने के बावजूद अनंत सिंह केवल अपनी छवि के कारण से 'मार खा' जाते हैं। उन पर लदे आपराधिक मुकदमे उनकी राह में रोड़ा हैं। इन विवादों के कारण वे सम्मानित और विशिष्ट नेता के श्रेणी में नहीं आ पाते।
अभी तक विधानसभा चुनाव में अनंत हारे नहीं
सूरजभान सिंह (भूमिहार) 2000 में मोकामा से तब विधायक बने थे, जब अनंत सिंह राजनीति में सक्रिय नहीं थे। सूरजभान सिंह ने अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह को हराया था। लेकिन 2005 से जब अनंत सिंह इस सीट पर सक्रिय हुए तब से कोई चुनाव नहीं हारा है। इस बीच सूरजभान सिंह कानूनी अड़चनों के कारण चुनाव से दूर हो गये। लेकिन समय-समय पर अपने परिजनों और नजदीकी लोगों के जरिये अनंत सिंह को चुनौती देते रहे हैं।
सूरजभान सिंह के चर्चित साथी ललन सिंह (भूमिहार) की पत्नी सोनम देवी ने 2010 में अनंत सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा था। भूमिहार वोटर अनंत सिंह के पक्ष में एकजुट रहे और वे जीत गये।
पप्पू यादव भी हो गये थे फेल
2015 में ललन सिंह, पप्पू यादव की पार्टी (जन अधिकार पार्टी) के टिकट पर खड़ा थे। वे चाह कर भी भूमिहार और यादव का गठबंधन नहीं बना सके। उन्हें करीब साढ़े सोलह हजार वोट ही मिल पाये थे। पप्पू यादव का नाम उनके काम नहीं आया। 2022 के उप चुनाव में भाजपा ने सोनम देवी (ललन सिंह की पत्नी) को उम्मीदवार बनाया था। इन सभी चुनाव में सूरजभान सिंह ने अपने लोगों को मैदान में उतार कर अनंत सिंह को चुनौती दी थी। लेकिन वे अनंत सिंह को हरा नहीं पाये।
अब सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी मोकामा से चुनाव लड़ रही हैं। दुलारचंद यादव की घटना बाद भूमिहार और यादव जिस तरह से दो विपरीत ध्रुवों पर खड़े हो गए हैं, उससे वीणा देवी की मुश्किलें बढ़ गयी हैं।
मोकामा समेत 5 विधानसभा सीटों पर असर
मोकामा में राजद ने भूमिहार जाति की वीणा देवी (सूरजभान सिंह की पत्नी) को ही अपना उम्मीदवार बनाया है। मोकामा के अलावा बाढ़, लखीसराय, सूर्यगढ़ा, बरबीघा, वारिसलीगंज विधानसभा सीटों पर अब नये समीकरण बनने के आसार हैं। इसके पहले भी अनंत सिंह मोकामा में अग्नि परीक्षा से गुजरे हैं, लेकिन उनके लिए लालू यादव, नीतीश कुमार, भाजपा, लोजपा कोई फैक्टर नहीं।
2015 में अनंत सिंह जेल में बंद थे। लालू-नीतीश एक हो कर उनका विरोध कर रहे थे। लोजपा-भाजपा भी विरोध कर रही थी। लेकिन इसके बाद भी बिना एक दिन प्रचार किये, अनंत सिंह चुनाव जीत गये थे। इस बार भूमिहार और एकजुट हो कर उनका समर्थन कर सकते हैं।
अनंत सिंह को मिल कर भी नहीं हरा पाए लालू-नीतीशमोकामा विधानसभा क्षेत्र भूमिहार बहुल है। पिछले 50 साल से इस सीट पर भूमिहार प्रत्याशी ही चुनाव जीतते आ रहे हैं। चाहे उनका दल कोई भी हो। इस क्षेत्र में यादव, धानुक, कोइरी, कुर्मी जाति भी अच्छी तादाद में हैं। भूमिहार वोटर अनंत सिंह के कट्टर समर्थक माने जाते हैं। लालू यादव के विरोध के बाद भी अनंत सिंह चुनाव जीतते रहे हैं। अभी तक अनंत सिंह पर यादवों का विरोध कोई असर नहीं डाल सका है।
2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और लालू यादव एक हो गए थे। इस चुनाव में अनंत सिंह निर्दलीय खड़ा थे। लालू- नीतीश ने अपने गठबंधन से यहां भूमिहार नेता नीरज कुमार को मैदान में उतारा था। महागठबंधन ये सोच रहा था कि यादव (लालू यादव), कुर्मी (नीतीश कुमार) और भूमिहार (नीरज कुमार) की त्रवेणी में अनंत सिंह तिनके की तरह बह जाएंगे। लेकिन सारे अनुमान धरे के धरे रह गये। अनंत सिंह, लालू-नीतीश के संयुक्त विरोध के बाद भी करीब 18 हजार वोटों से जीत गये। वह भी बिना एक दिन प्रचार किए।
अनंत सिंह के आगे भाजपा-लोजपा भी बेअसर
2015 का चुनाव अनंत सिंह की सियासी ताकत का असल सबूत है। इस चुनाव में भाजपा और लोजपा का गठबंधन था। लोजपा ने इस सीट पर सूरजभान सिंह के भाई कन्हैया सिंह को मैदान में उतारा था। कन्हैया सिंह को भूमिहार वोट, लोजपा के पासवान वोट और भाजपा के आधार वोट मिलने की आशा थी। लेकिन उनकी भी आशा पूरी नहीं हुई। कन्हैया सिंह को केवल 15 हजार 472 वोट ही मिले। यानी मोकामा में भाजपा और लोजपा भी कोई फैक्टर नहीं हैं।
अनंत सिंह रेयरेस्ट ऑफ रेयर पॉलिटिशियन
अनंत सिंह की चुनावी जीत बिहार की राजनीति के लिए एक आश्चर्यजनक घटना है। राजनीति पंडित भी इसका सटीक विश्लेषण नहीं कर सकते। आज के दौर में क्या यादव, कुर्मी, पासवान जैसी मजबूत जातियों के विरोध को झेल कर कोई चुनाव जीत सकता है ? लेकिन अनंत सिंह पर यह सवाल लागू नहीं होता। वे जीत जाते हैं। अनंत सिंह के सामने भाजपा का सवर्ण और वैश्य कार्ड भी फेल हो जाता है। कोई ऐसा व्यक्ति जो बिहार की प्रचलित जातीय समीकरण और विचारवाद से परे हो, बेअसर हो, उसे रेयरेस्ट ऑफ रेयर पॉलिटिशियन ही माना जाएगा। लेकिन ऐसी असाधारण क्षमता रखने के बावजूद अनंत सिंह केवल अपनी छवि के कारण से 'मार खा' जाते हैं। उन पर लदे आपराधिक मुकदमे उनकी राह में रोड़ा हैं। इन विवादों के कारण वे सम्मानित और विशिष्ट नेता के श्रेणी में नहीं आ पाते।
अभी तक विधानसभा चुनाव में अनंत हारे नहीं
सूरजभान सिंह (भूमिहार) 2000 में मोकामा से तब विधायक बने थे, जब अनंत सिंह राजनीति में सक्रिय नहीं थे। सूरजभान सिंह ने अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह को हराया था। लेकिन 2005 से जब अनंत सिंह इस सीट पर सक्रिय हुए तब से कोई चुनाव नहीं हारा है। इस बीच सूरजभान सिंह कानूनी अड़चनों के कारण चुनाव से दूर हो गये। लेकिन समय-समय पर अपने परिजनों और नजदीकी लोगों के जरिये अनंत सिंह को चुनौती देते रहे हैं।
सूरजभान सिंह के चर्चित साथी ललन सिंह (भूमिहार) की पत्नी सोनम देवी ने 2010 में अनंत सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा था। भूमिहार वोटर अनंत सिंह के पक्ष में एकजुट रहे और वे जीत गये।
पप्पू यादव भी हो गये थे फेल
2015 में ललन सिंह, पप्पू यादव की पार्टी (जन अधिकार पार्टी) के टिकट पर खड़ा थे। वे चाह कर भी भूमिहार और यादव का गठबंधन नहीं बना सके। उन्हें करीब साढ़े सोलह हजार वोट ही मिल पाये थे। पप्पू यादव का नाम उनके काम नहीं आया। 2022 के उप चुनाव में भाजपा ने सोनम देवी (ललन सिंह की पत्नी) को उम्मीदवार बनाया था। इन सभी चुनाव में सूरजभान सिंह ने अपने लोगों को मैदान में उतार कर अनंत सिंह को चुनौती दी थी। लेकिन वे अनंत सिंह को हरा नहीं पाये।
अब सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी मोकामा से चुनाव लड़ रही हैं। दुलारचंद यादव की घटना बाद भूमिहार और यादव जिस तरह से दो विपरीत ध्रुवों पर खड़े हो गए हैं, उससे वीणा देवी की मुश्किलें बढ़ गयी हैं।
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