नई दिल्ली: लोहित रेड्डी एक पारंपरिक किसान परिवार से आते हैं। उनके पिता और दादा रागी तथा कुछ दलहली फसलें उगाते थे। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद सबको उम्मीद थी कि वे आईटी सेक्टर में करियर बनाएंगे। लेकिन लोहित के मन में फूलों की खुशबू बस चुकी थी। इस जुनून की नींव उनके चचेरे भाई गोपाल एस रेड्डी ने रखी, जो साल 1995 से फूलों की खेती कर रहे थे। लोहित अक्सर उनके खेत में मदद करते और फूलों की नाजुक देखभाल से मंत्रमुग्ध हो जाते। वहीं से उनकी 'फ्लोरिकल्चर' की यात्रा शुरू हुई। आज लोहित फूलों की खेती से लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं।
साल 2013 में गोपाल यूके चले गए और गुलाब की खेती छोड़ दी। ऐसे में लोहित ने फूलों की खेती में अवसर देखा। उन्होंने उस अधूरे फार्म को संभालने का फैसला किया और फूलों की व्यावसायिक खेती शुरू की। साल 2018 में उन्होंने 15 लाख रुपये का निवेश किया। इस रकम से उन्होंने पॉलीहाउस बनवाया और 12,000 जरबेरा (Gerbera) पौधे खरीदे। शुरुआती महीनों में वे हर महीने 1.5 लाख रुपये तक कमाने लगे।
जरबेरा की ही खेती क्यों?31 साल के लोहित रेड्डी बेंगलुरु के कोम्मासंद्रा के रहने वाले हैं। वह बताते हैं कि जरबेरा तीन साल तक लगातार फूल देता है। उन्हें एक स्थिर आय चाहिए थी और यह मेरे लिए सही शुरुआत थी।
जरबेरा में सफलता के बाद लोहित ने गुलदाउदी (Chrysanthemum) की खेती शुरू की। यह ऐसा फूल है जो भारत में अभी भी सीमित किसानों द्वारा उगाया जाता है। उन्होंने फार्म के 4,000 वर्ग मीटर हिस्से में गुलदाउदी और 2,000 वर्ग मीटर में जरबेरा लगाया। गुलदाउदी एक चुनौतीपूर्ण फसल है। यह प्रकाश-संवेदनशील होती है और इसे 17-18 घंटे अंधेरे की जरूरत पड़ती है। लेकिन लोहित ने बेंगलुरु की जलवायु और आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके इस चुनौती को अवसर में बदला।
अब पूरी तरह गुलदाउदी की खेतीखेती के शुरुआती दौर में उन्हें बहुत कुछ सीखना पड़ा। वे कहते हैं, 'शुरुआत में हमारे पास ज्यादा तकनीकी जानकारी नहीं थी। सब कुछ खुद ही समझना पड़ रहा था। लेकिन धीरे-धीरे मुझे एहसास हुआ कि हमें अपनी किस्मों को बेहतर बनाने के लिए ब्रीडर्स से मदद की जरूरत है। आज लोहित का गुलदाउदी फार्म 'लोहित फ्लोरा' (Lohith Flora) एक सफल बिजनेस बन गया है। वे बताते हैं कि साल 2023 के बाद उन्होंने अपनी 2.5 एकड़ जमीन को पूरी तरह से गुलदाउदी उगाने के लिए बदल दिया।
खेती में लगातार सुधारलोहित ने अपनी खेती में लगातार सुधार किए। उन्होंने बेहतर सिंचाई, तापमान नियंत्रण और कोल्ड स्टोरेज जैसी सुविधाएं जोड़ीं। उन्होंने एक कोल्ड चेन सिस्टम बनाया जिससे फूलों की ताजगी दूर-दराज के शहरों तक बनी रहे। आज उनके ब्रांड लोहित फ्लोरा से हर हफ्ते करीब 1500 गुलदाउदी के गुच्छे निकलते हैं जो जयपुर, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद और गुवाहाटी जैसे शहरों में पहुंचते हैं।
हर महीने कितनी कमाई?लोहित के फार्म ने 20 से ज्यादा लोगों को रोजगार दिया है। वे हर दस दिन में नई पौध लगाते हैं ताकि उत्पादन निरंतर बना रहे। उनका फार्म हर हफ्ते 1500 गुच्छे गुलदाउदी का प्रोडक्शन करता है, जिससे हर महीने 7 लाख रुपये की स्थिर आय होती है। वहीं मजदूरी, सिंचाई और फार्म का रखरखाव समेत मासिक खर्च करीब 3 से 3.5 लाख रुपये है।
साल 2013 में गोपाल यूके चले गए और गुलाब की खेती छोड़ दी। ऐसे में लोहित ने फूलों की खेती में अवसर देखा। उन्होंने उस अधूरे फार्म को संभालने का फैसला किया और फूलों की व्यावसायिक खेती शुरू की। साल 2018 में उन्होंने 15 लाख रुपये का निवेश किया। इस रकम से उन्होंने पॉलीहाउस बनवाया और 12,000 जरबेरा (Gerbera) पौधे खरीदे। शुरुआती महीनों में वे हर महीने 1.5 लाख रुपये तक कमाने लगे।
जरबेरा की ही खेती क्यों?31 साल के लोहित रेड्डी बेंगलुरु के कोम्मासंद्रा के रहने वाले हैं। वह बताते हैं कि जरबेरा तीन साल तक लगातार फूल देता है। उन्हें एक स्थिर आय चाहिए थी और यह मेरे लिए सही शुरुआत थी।
जरबेरा में सफलता के बाद लोहित ने गुलदाउदी (Chrysanthemum) की खेती शुरू की। यह ऐसा फूल है जो भारत में अभी भी सीमित किसानों द्वारा उगाया जाता है। उन्होंने फार्म के 4,000 वर्ग मीटर हिस्से में गुलदाउदी और 2,000 वर्ग मीटर में जरबेरा लगाया। गुलदाउदी एक चुनौतीपूर्ण फसल है। यह प्रकाश-संवेदनशील होती है और इसे 17-18 घंटे अंधेरे की जरूरत पड़ती है। लेकिन लोहित ने बेंगलुरु की जलवायु और आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके इस चुनौती को अवसर में बदला।
अब पूरी तरह गुलदाउदी की खेतीखेती के शुरुआती दौर में उन्हें बहुत कुछ सीखना पड़ा। वे कहते हैं, 'शुरुआत में हमारे पास ज्यादा तकनीकी जानकारी नहीं थी। सब कुछ खुद ही समझना पड़ रहा था। लेकिन धीरे-धीरे मुझे एहसास हुआ कि हमें अपनी किस्मों को बेहतर बनाने के लिए ब्रीडर्स से मदद की जरूरत है। आज लोहित का गुलदाउदी फार्म 'लोहित फ्लोरा' (Lohith Flora) एक सफल बिजनेस बन गया है। वे बताते हैं कि साल 2023 के बाद उन्होंने अपनी 2.5 एकड़ जमीन को पूरी तरह से गुलदाउदी उगाने के लिए बदल दिया।
खेती में लगातार सुधारलोहित ने अपनी खेती में लगातार सुधार किए। उन्होंने बेहतर सिंचाई, तापमान नियंत्रण और कोल्ड स्टोरेज जैसी सुविधाएं जोड़ीं। उन्होंने एक कोल्ड चेन सिस्टम बनाया जिससे फूलों की ताजगी दूर-दराज के शहरों तक बनी रहे। आज उनके ब्रांड लोहित फ्लोरा से हर हफ्ते करीब 1500 गुलदाउदी के गुच्छे निकलते हैं जो जयपुर, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद और गुवाहाटी जैसे शहरों में पहुंचते हैं।
हर महीने कितनी कमाई?लोहित के फार्म ने 20 से ज्यादा लोगों को रोजगार दिया है। वे हर दस दिन में नई पौध लगाते हैं ताकि उत्पादन निरंतर बना रहे। उनका फार्म हर हफ्ते 1500 गुच्छे गुलदाउदी का प्रोडक्शन करता है, जिससे हर महीने 7 लाख रुपये की स्थिर आय होती है। वहीं मजदूरी, सिंचाई और फार्म का रखरखाव समेत मासिक खर्च करीब 3 से 3.5 लाख रुपये है।
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