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वृंदावन के संत प्रेमानंद महाराज को दिया जाए 'भारत रत्न', मैनपुरी के सामाजिक कार्यकर्ता ने पीएम मोदी को लिखा पत्र

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मैनपुरी: उत्तर प्रदेश के मैनपुरी से वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज को भारत रत्न सम्मान देने की मांग उठी है। मैनपुरी जिले के सामाजिक कार्यकर्ता सतेंद्र कुमार यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि संत प्रेमानंद महाराज को उनके आध्यात्मिक योगदान और समाज के प्रति सेवा के लिए देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया जाए। सतेंद्र यादव ने अपने पत्र में लिखा है कि संत प्रेमानंद महाराज न केवल एक धार्मिक गुरु हैं, बल्कि आध्यात्मिकता, नैतिकता और मानवता के प्रतीक हैं। वे अपनी शिक्षाओं, सत्संगों और प्रवचनों के माध्यम से लोगों को सदाचार, भक्ति और सेवा का मार्ग दिखा रहे हैं।

बताया समाज के लिए प्रेरणास्रोतसामाजिक कार्यकर्ता सत्येंद्र यादव ने कहा कि वृंदावन के संत प्रेमानंद महाराज का जीवन त्याग, भक्ति और लोककल्याण के उदाहरणों से भरा हुआ है। वे न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी करोड़ों अनुयायियों के लिए श्रद्धा और विश्वास का केंद्र हैं। उनकी शिक्षाएं समाज को नैतिक और आध्यात्मिक दिशा प्रदान करती हैं। ऐसे महान संत को भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए, जिससे देशभर के श्रद्धालुओं की भावनाओं का सम्मान हो।

कौन हैं संत प्रेमानंद?संत प्रेमानंद महाराज मथुरा जिले के वृंदावन में स्थित अपने आश्रम से देशभर के भक्तों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देते हैं। वे भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की भक्ति पर आधारित प्रेम, सेवा और करुणा के संदेश फैलाने के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य जीवन में धर्म को कर्म से जोड़ना और ईश्वर की भक्ति के साथ समाज की सेवा करना है।

प्रेमानंद महाराज अपने सत्संगों में सदाचार, संयम, प्रेम और करुणा की बातें करते हैं। वे विशेष रूप से युवा पीढ़ी को भारतीय संस्कृति से जुड़ने का संदेश देते हैं। उनके अनुयायी देश भर में फैले हुए हैं।

मांग का प्रतीकात्मक महत्वदरअसल, भारत रत्न देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। यह कला, साहित्य, विज्ञान, सार्वजनिक सेवा या किसी अन्य क्षेत्र में असाधारण योगदान देने वाले व्यक्तियों को दिया जाता है। अगर संत प्रेमानंद महाराज को यह सम्मान मिलता है, तो यह न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक जगत की मान्यता होगी। यह देश की संस्कृति और अध्यात्मिक विरासत के प्रति सम्मान का प्रतीक साबित होगा।
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