इस्लामाबाद: अफगान तालिबान और पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य झड़पों की वजह टीटीपी जैसे गुटों को माना जा है। पाकिस्तान का कहना है कि उसके सुरक्षाकर्मियों को निशाना बना रहे टीटीपी को अफगानिस्तान में पनाह मिल रही हैं। टीटीपी को लेकर पाकिस्तान की ओर से सार्वजनिक बयानबाजी की जा रही है लेकिन पर्दे के पीछे अलग कहानी होने का दावा किया जा रहा है। ऐसी अटकले हैं कि इस संघर्ष की जड़ में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अफगानिस्तान के बगराम सैन्य अड्डे पर नियंत्रण की इच्छा है।
अदिति भादुरी ने एनडीटीवी में अपने लेख में बताया है कि कैसे पाकिस्तान और अफगानिस्तान के झगड़े की जड़ बगराम है। ट्रंप ने कुछ समय पहले चेतावनी दी थी कि अगर तालिबान बगराम को वापस देने से इनकार करता है तो उसे बुरे अंजाम भुगतने होंगे। इसके कुछ दिन बाद इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में हवाई हमले कर दिए। डोनाल्ड ट्रंप के पाक सेना प्रमुख असीम मुनीर के साथ संबंधों को देखते हुए कहा जा रहा है कि दोनों के बीच बगराम पर 'डील' हुई है।
बगराम और पाकिस्तान-अमेरिकाअमेरिका का बगराम पर लंबे समय तक नियंत्रण रहा है। इसे वापस पाने की ट्रंप की कोशिश के कई कारण हैं। काबुल से सिर्फ 60 किलोमीटर दूर स्थित बगराम अमेरिका को यूरेशिया में पैर जमाने का मौका देगा,जहां से वह चीन, ईरान, रूस, मध्य एशियाई देशों के साथ-साथ पाकिस्तान और उसके परमाणु शस्त्रागार पर भी नजर रख सकेगा। ऐसे में ट्रंप इसे फिर से पाने के बेचैन हैं लेकिन तालिबान ने अभी तक इस पर कड़ा रुख अपनाया है।
अमेरिका का बगराम में आना पाकिस्तान के लिए भी फायदेमंद हो सकता है। पाकिस्तान ऐसी सेवाएं प्रदान करने के लिए हमेशा तत्पर रहा है। बगराम दुनिया के सबसे बड़े हवाई अड्डों में से एक है। अमेरिका के लिए बरगाम 20 साल तक सबसे बड़ा सैन्य केंद्र था। अमेरिका ने इस अड्डे पर फिर से कब्जा कियातो उसे रसद और व्यापक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बनाए रखने के लिए पाकिस्तान की आवश्यकता होगी। इससे पाकिस्तान को अच्छा राजस्व प्राप्त होगा।
पाकिस्तान को क्या फायदापाकिस्तान को बगराम पर अमेरिकी वापसी से राजस्व के अलावा भी फायदा होगा। अमेरिका यहां अपनी उपस्थिति के लिए पाकिस्तान पर निर्भर होगा। इसका फायदा इस्लामाबाद को होगा। इतना ही नहीं अमेरिकी की बगराम पर उपस्थिति तालिबान पर भी लगाम लगाएगी। पाकिस्तान के लिए तालिबान को काबू करना फिलहाल जरूरी दिखता है। ऐसे में इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तान की तालिबान से की गई तनातनी अमेरिकी सेना को बगराम में एंट्री देने का प्रपंच हो सकता है।
अदिति भादुरी ने एनडीटीवी में अपने लेख में बताया है कि कैसे पाकिस्तान और अफगानिस्तान के झगड़े की जड़ बगराम है। ट्रंप ने कुछ समय पहले चेतावनी दी थी कि अगर तालिबान बगराम को वापस देने से इनकार करता है तो उसे बुरे अंजाम भुगतने होंगे। इसके कुछ दिन बाद इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में हवाई हमले कर दिए। डोनाल्ड ट्रंप के पाक सेना प्रमुख असीम मुनीर के साथ संबंधों को देखते हुए कहा जा रहा है कि दोनों के बीच बगराम पर 'डील' हुई है।
बगराम और पाकिस्तान-अमेरिकाअमेरिका का बगराम पर लंबे समय तक नियंत्रण रहा है। इसे वापस पाने की ट्रंप की कोशिश के कई कारण हैं। काबुल से सिर्फ 60 किलोमीटर दूर स्थित बगराम अमेरिका को यूरेशिया में पैर जमाने का मौका देगा,जहां से वह चीन, ईरान, रूस, मध्य एशियाई देशों के साथ-साथ पाकिस्तान और उसके परमाणु शस्त्रागार पर भी नजर रख सकेगा। ऐसे में ट्रंप इसे फिर से पाने के बेचैन हैं लेकिन तालिबान ने अभी तक इस पर कड़ा रुख अपनाया है।
अमेरिका का बगराम में आना पाकिस्तान के लिए भी फायदेमंद हो सकता है। पाकिस्तान ऐसी सेवाएं प्रदान करने के लिए हमेशा तत्पर रहा है। बगराम दुनिया के सबसे बड़े हवाई अड्डों में से एक है। अमेरिका के लिए बरगाम 20 साल तक सबसे बड़ा सैन्य केंद्र था। अमेरिका ने इस अड्डे पर फिर से कब्जा कियातो उसे रसद और व्यापक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बनाए रखने के लिए पाकिस्तान की आवश्यकता होगी। इससे पाकिस्तान को अच्छा राजस्व प्राप्त होगा।
पाकिस्तान को क्या फायदापाकिस्तान को बगराम पर अमेरिकी वापसी से राजस्व के अलावा भी फायदा होगा। अमेरिका यहां अपनी उपस्थिति के लिए पाकिस्तान पर निर्भर होगा। इसका फायदा इस्लामाबाद को होगा। इतना ही नहीं अमेरिकी की बगराम पर उपस्थिति तालिबान पर भी लगाम लगाएगी। पाकिस्तान के लिए तालिबान को काबू करना फिलहाल जरूरी दिखता है। ऐसे में इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तान की तालिबान से की गई तनातनी अमेरिकी सेना को बगराम में एंट्री देने का प्रपंच हो सकता है।
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