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क्या सरकार आपकी प्रॉपर्टी कभी भी ले सकती है? सुप्रीम कोर्ट के इस बड़े फैसले से समझें अपने अधिकार

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क्या सरकार आपकी प्रॉपर्टी कभी भी ले सकती है? सुप्रीम कोर्ट के इस बड़े फैसले से समझें अपने अधिकार

News India Live,Digital Desk: अगर आपके पास अपनी ज़मीन, मकान या कोई दूसरी निजी प्रॉपर्टी है, तो ये ख़बर आपके लिए बहुत ज़रूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में प्रॉपर्टी पर कब्ज़े और सरकार द्वारा उसे अपने अधिकार में लेने (अधिग्रहण) को लेकर एक बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण फैसला (SC decision on property) सुनाया है। ये फैसला देशभर के प्रॉपर्टी मालिकों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।

इस फैसले में कोर्ट ने साफ किया है कि सरकार कब और किन शर्तों पर किसी की निजी संपत्ति को अपने कब्ज़े में ले सकती है और कब नहीं। कोर्ट ने प्रॉपर्टी से जुड़े हमारे अधिकारों (govt rights on private property) को और स्पष्ट करते हुए कई नियम भी बताए हैं। आइए, समझते हैं सुप्रीम कोर्ट के इस अहम फैसले को आसान भाषा में।

9 जजों की बेंच ने गहराई से की सुनवाई:

ये कोई छोटा-मोटा फैसला नहीं है। निजी संपत्ति पर सरकार के अधिकार (property acquisition rules) जैसे गंभीर मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के दो-चार नहीं, बल्कि देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) समेत पूरे 9 जजों की एक बहुत बड़ी बेंच ने मिलकर विचार-विमर्श किया और फिर अपना निर्णय सुनाया।

इस बेंच ने 8-1 के बहुमत से (यानी 9 में से 8 जज एकमत थे) ये फैसला दिया है। इस बेंच में पूर्व चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ (Former Chief Justice DY Chandrachud) के साथ जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस बी. वी. नागरत्ना जैसे अनुभवी जज भी शामिल थे। कोर्ट ने साफ कहा है कि सरकार हर तरह की निजी संपत्ति (acquisition rules for property) को जब चाहे तब अधिग्रहित नहीं कर सकती।

पुराने फैसले से क्यों अलग है ये नज़रिया?

लगभग 54 साल पहले, जस्टिस कृष्णा अय्यर ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि किसी भी निजी संपत्ति (property news) को समुदाय यानी समाज की संपत्ति माना जा सकता है और ज़रूरत पड़ने पर सरकार उसे अपने अधिकार में ले सकती है।

लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस पुरानी सोच से असहमति जताई है। कोर्ट का तर्क है कि 54 साल पहले देश की अर्थव्यवस्था और उसके लक्ष्य अलग थे। आज भारत एक विकासशील देश है और हमारी अर्थव्यवस्था का मकसद आज की चुनौतियों से निपटना है, न कि किसी एक पुरानी आर्थिक सोच पर अटके रहना।

पूर्व चीफ जस्टिस ने क्या कहा?

पूर्व CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ ने बताया कि इस केस में कुल तीन तरह के फैसले (SC judgement on property acquisition) शामिल हैं – एक उनका और 6 अन्य जजों का बहुमत वाला फैसला, दूसरा जस्टिस नागरत्ना का थोड़ा अलग मत वाला फैसला, और तीसरा जस्टिस धूलिया का पूरी तरह से असहमति वाला फैसला। ये दिखाता है कि इस मुद्दे पर कितनी गहराई से विचार हुआ है। आपको बता दें कि निजी प्रॉपर्टी पर सरकारी कब्ज़े (govt possession on private property) के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने कुल 16 अलग-अलग याचिकाओं पर एक साथ ये फैसला सुनाया है।

महाराष्ट्र के कानून का क्या था मामला?

इन 16 याचिकाओं में मुंबई के कुछ प्रॉपर्टी मालिकों (mumbai property case) की याचिका भी शामिल थी। ये मामला 1986 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा अपने एक कानून (property acquisition law) में किए गए बदलाव से जुड़ा था। इस बदलाव ने सरकार को ये अधिकार दे दिया था कि वह किसी भी पुरानी या जर्जर निजी बिल्डिंग को मरम्मत या सुरक्षा के नाम पर अपने कब्ज़े (property Encroachment) में ले सकती है। प्रॉपर्टी मालिकों ने इसी बदलाव को भेदभावपूर्ण बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने निजी संपत्ति के अधिकार को और मज़बूती दी है और ये साफ किया है कि सरकार की शक्तियां असीमित नहीं हैं।

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