राजस्थान के अलवर जिले में सरिस्का के जंगलों से घिरा भानगढ़ आज भी कई रहस्यों को समेटे हुए है। इसके निर्माण और खंडहरों की कई कहानियां इतिहास की किताबों में दफन हैं। पाठकों को इन कहानियों से परिचित कराने के लिए हमने 'भानगढ़ और अनसुनी कहानियां' सीरीज शुरू की है।पहली सीरीज में आपने पढ़ा कि "भानगढ़ की सच्चाई जानने के लिए एक अंग्रेज रात भर रुका और सुबह उसकी लाश मिली..."। इस सीरीज में आज हम पेश करते हैं कि कैसे दो राजपूतों के मुसलमान बन जाने से भानगढ़ का विनाश हुआ। हालाँकि, इन कहानियों में कितनी सच्चाई है? यह तो हम नहीं जानते, लेकिन भानगढ़ के बारे में ऐसी कई कहानियाँ लोगों के बीच मशहूर हैं। राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार विनोद भारद्वाज ने भानगढ़ पर काफी शोध किया है। आज हम पेश करते हैं 'भानगढ़ और अनसुनी कहानियां' की दूसरी सीरीज...
जब राजपूत मुसलमान बन गए, तो भानगढ़ का विनाश हो गया
भानगढ़ के बारे में कई कहानियाँ मशहूर हैं। ऐसी ही एक कहानी यह है कि भानगढ़ और अजबगढ़ का विनाश दो राजपूत सामंतों के इस्लाम धर्म अपनाने के कारण हुआ था। इतिहासकार प्रो. आर.एस. खंगारोत के अनुसार, राजपूत से मुसलमान बने मोहम्मद कुलीन और मोहम्मद दलहेज भानगढ़ और अजबगढ़ के शासक बन गए थे। इसी समय दिल्ली में मुगलों की शक्ति कमजोर होती देख जय सिंह द्वितीय ने भानगढ़ और अजबगढ़ पर आक्रमण कर दिया। इतना ही नहीं, उसने इस्लाम धर्म अपनाने वाले दोनों राजाओं को मार डाला और उनके राज्यों को नष्ट करके खंडहर में बदल दिया।
एक खूबसूरत रानी और एक तांत्रिक का श्राप
भानगढ़ के विनाश के बारे में कई अन्य कहानियाँ प्रचलित हैं, लेकिन सबसे प्रचलित कहानी यह है कि इस राज्य में तांत्रिकों, साधुओं और ज्योतिषियों का बहुत सम्मान था। महाराजा छतर सिंह की रानी रत्नावती तीतरवाड़ा की बेटी थीं, वह न केवल बहुत खूबसूरत थीं, बल्कि तंत्र-मंत्र की विधियों में भी निपुण थीं।कहते हैं कि जब सिंघा नामक एक तांत्रिक ने भानगढ़ के बारे में सुना कि यहां तांत्रिकों का सम्मान किया जाता है, तो वह यहां पहुंचा और महल के सामने एक पहाड़ी पर अपना स्थान बनाकर साधना करने लगा। जाने कैसे! एक बार उसने पहाड़ी से रानी को देखा और उसकी सुंदरता पर मोहित हो गया। वह अच्छी तरह जानता था कि तांत्रिक शक्तियों का प्रयोग किए बिना रानी तक पहुंचना असंभव है, दूसरे वह यह भी जानता था कि जिसे वह चाहता है वह कोई साधारण स्त्री नहीं, बल्कि उसी राज्य की रानी है जहां उसने शरण ली है।
अगर राजा को उसके प्रयासों की भनक लग गई, तो उसकी जान बचाने वाला कोई नहीं होगा। इतना सब होने के बाद भी वह रानी को अपने मन से निकाल नहीं पा रहा था। अंत में इस सेवड़ा तांत्रिक ने अपनी तांत्रिक विद्या के जरिए रानी रत्नावती को अपने वश में करने का निर्णय लिया। उसने कई बार छोटे-छोटे प्रयास किए, लेकिन वह सफल नहीं हो सका। लगातार असफल होने के कारण उसके मन में रानी को पाने की चाहत बढ़ती जा रही थी और वह बदला लेने की हद तक बढ़ रही थी। दूसरी ओर सिंघा को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि रानी रत्नावती भी तंत्र विद्या में पारंगत है। यह न जानने के कारण तांत्रिक ने आखिरकार एक गलती कर दी, जिसके कारण वह न केवल अपनी मौत का, बल्कि भानगढ़ के विनाश का भी कारण बन गया।
हुआ यह कि रानी को न पा पाने और कई बार असफल होने के बाद हताश होकर उसने अपनी आखिरी चाल चली।सिंहा ने रानी की एक दासी को अपनी कुटिल योजना का हिस्सा बनाया। जब यह दासी बाजार से महल की ओर जा रही थी, तो तांत्रिक ने उस दासी को अपने वशीकरण मंत्र से बंधा एक तेल का कटोरा देते हुए समझाया कि हम तंत्र सिद्ध बाबा हैं, यह तेल रानी को दे दो और उसे समझाओ कि वह इस तेल का प्रयोग अपने शरीर पर करे, इससे उसका भला होगा।महल पहुंचकर दासी ने तेल का कटोरा रानी के सामने रखा और उन्हें सारी बात बताई, साथ ही उस तांत्रिक बाबा के प्रकट होने का भी वर्णन किया।
रानी ने तेल की परीक्षा करने के लिए उस पर अपना मंत्र डाला, तेल हिलने लगा, रत्नावती को अपनी शक्तियों से पता चल गया कि तेल में वशीकरण के साथ-साथ घातक मंत्र और तंत्र का प्रयोग किया गया है। रानी समझ गई कि तांत्रिक ने उसे अपने प्रेम जाल में बांधने के लिए ही दासी के माध्यम से यह तेल भेजा है।रानी के क्रोध की सीमा नहीं रही और इसी क्रोध में उसने तुरंत अपने सामने रखे तेल के कटोरे पर सिद्ध घातक मंत्र पढ़ा और उसे अपने सामने पहाड़ी पर फेंक दिया, जहां तांत्रिक बैठकर अनुष्ठान कर रहा था। तेल वहां से एक चट्टान के रूप में भयानक आवाज के साथ उड़ा और तांत्रिक पर कहर बरपाया और सिंघा वहीं मर गया।
कहते हैं कि मरने से पहले उसने श्राप दिया कि मंदिरों को छोड़कर पूरा भानगढ़ नष्ट हो जाएगा और सभी लोग मारे जाएंगे।भानगढ़ के आसपास के गांवों के कई लोगों का मानना है कि तांत्रिक के श्राप के कारण किले समेत सभी इमारतें खंडहर हो गईं, लेकिन मंदिर सुरक्षित रहे। कुछ लोगों का मानना है कि इस श्राप के कारण असमय मरने वाले लोगों की आत्माएं आज भी यहां भटकती हैं और ऐसा माना जाता है कि इसी कारण यह स्थान प्रेतवाधित है और यहां फिर कोई नहीं रहता।
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