सुप्रीम कोर्ट ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। यह अधिनियम लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण प्रदान करता है। कोर्ट ने कहा कि सरकार महिला आरक्षण कानून को लागू करने की समय-सीमा बताए। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि जब संसद ने पहले ही यह कानून पारित कर दिया है, तो इसके कार्यान्वयन में देरी क्यों हो रही है। कांग्रेस नेता जया ठाकुर द्वारा दायर एक याचिका में महिला आरक्षण को तुरंत लागू करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि कानून में "परिसीमन के बाद कार्यान्वयन" संबंधी प्रावधान को हटाया जाए और आरक्षण को तुरंत लागू किया जाए।
सुनवाई के दौरान, वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने सवाल उठाया कि जब यह कानून नारी शक्ति वंदन अधिनियम के नाम से पारित किया गया था, तो इसे लागू करने में देरी क्यों हुई। यह दुखद है कि आज़ादी के 75 साल बाद भी हमें संसद में प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण की मांग करनी पड़ रही है। गुप्ता ने आगे तर्क दिया कि अगर अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण बिना जनगणना या परिसीमन के लागू किया जा सकता है, तो महिलाओं के लिए क्यों नहीं? उन्होंने यह भी कहा कि संसद ने इस कानून को एक विशेष सत्र में पारित किया था, जिसका अर्थ है कि सरकार के पास पहले से ही आवश्यक आंकड़े मौजूद थे।
न्यायमूर्ति जे. नागरत्ना ने कहा कि महिलाएँ देश की सबसे बड़ी अल्पसंख्यक हैं। उन्होंने केंद्र सरकार से पूछा कि परिसीमन प्रक्रिया कब शुरू होगी। सर्वोच्च न्यायालय ने जवाब दिया कि कानून को लागू करना सरकार और कार्यपालिका की ज़िम्मेदारी है, लेकिन अदालत यह ज़रूर पूछ सकती है कि इसे लागू करने की समय-सीमा क्या है। सर्वोच्च न्यायालय ने अब केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर यह बताने का निर्देश दिया है कि जनगणना और परिसीमन प्रक्रिया कब शुरू होगी और महिला आरक्षण कब लागू होगा।
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