नई दिल्ली, 08 अगस्त (Udaipur Kiran) । दिल्ली विधानसभा में मानसून सत्र के दौरान शुक्रवार को दिल्ली स्कूल शिक्षा ‘फीस निर्धारण और विनियमन में पारदर्शिता विधेयक 2025’ बहुमत के साथ पारित हुआ।
मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने सदन में कहा कि ‘दिल्ली स्कूल शिक्षा ‘फीस निर्धारण और विनियमन में पारदर्शिता विधेयक 2025’ राजधानी के अभिभावकों के हक का पहरेदार है। उन्होंने यह भी कहा कि यह विधेयक शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता लाएगा और जनता में विश्वास पैदा करेगा।
उन्होंने यह भी कहा कि यह विधेयक राजधानी के लाखों अभिभावकों के अधिकारों की रक्षा करने वाला एक यथार्थपरक और निर्णायक कानून है। यह विधेयक न केवल निजी स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाएगा, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता, न्याय और जवाबदेही की नई बुनियाद रखेगा। सदन में यह विधेयक बहुमत के आधार पर पारित कर दिया गया। सदन में शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने भी विधेयक के बारे में विस्तृत जानकारी दी और विपक्ष के आरोपों को बेबुनियाद और झूठा करार दिया।
मुख्यमंत्री ने विधानसभा में दिल्ली के अभिभावकों के दिल के दर्द और भावनाओं को उकेरा और कहा कि इस विधेयक को लाने के लिए वह शिक्षा मंत्री आशीष सूद को बधाई देती हैं, जिन्होंने इतने कम समय में विभिन्न शिक्षा विशेषज्ञों, संगठनों, अभिभावकों आदि से चर्चा कर इसे तैयार किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि दिल्ली में शिक्षा को एक दशक से जिस तरह ‘शिक्षा क्रांति’ के खोखले नारों के पीछे दबाया गया, वह अब उजागर हो चुका है। आम आदमी पार्टी के शासनकाल में स्कूलों की इमारतें अधूरी रहीं, शिक्षक नियुक्त नहीं हुए, और शिक्षा व्यवस्था भ्रष्टाचार के गर्त में चली गई। उन्होंने कहा कि आज जब अदालतें क्लासरूम घोटाले पर सवाल कर रही हैं, दिल्ली की पूर्व आप सरकार के पास सिवाय चुप्पी और दिखावे के कोई उत्तर नहीं है।
मुख्यमंत्री ने इस विधेयक के तीन प्रमुख प्रावधानों की जानकारी दी और कहा कि यह प्रावधान स्कूल प्रबंधकों की मनमानी रोकेंगे, साथ ही अभिभावकों की भावनओं को मजबूत करेंगे। उन्होंने बताया कि फीस निर्धारण में पारदर्शिता: अब कोई भी निजी स्कूल अपनी मनमानी से फीस नहीं बढ़ा सकेगा। फीस तय करने के लिए स्कूल को अपनी लोकेशन, सुविधाएं, खर्च और शिक्षण स्तर जैसी जानकारियां प्रस्तुत करनी होंगी, और अनुमति प्राप्त करनी होगी। उन्होंने कहा कि बिना अनुमति फीस बढ़ाने पर एक लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा। यदि कोई स्कूल समय पर अतिरिक्त वसूली वापस नहीं करता, तो दंड की राशि दोगुनी कर दी जाएगी। बार-बार उल्लंघन करने पर मान्यता रद्द की जा सकती है और आवश्यकता पड़ने पर सरकार स्वयं स्कूल का संचालन करेगी।
मुख्यमंत्री ने बताया कि इस विधेयक में अभिभावकों की भागीदारी मजबूत की गई है। विधेयक में त्रिस्तरीय नियामक प्रणाली प्रस्तावित है, जो इस प्रकार है- स्कूल स्तर पर समिति, जिला स्तर पर शिक्षा निदेशक की समिति, और राज्य स्तर पर स्वतंत्र अपीलीय न्यायाधिकरण। इन समितियों में माता-पिता, शिक्षक, प्रधानाचार्य और अधिकारी सभी को प्रतिनिधित्व मिलेगा।
मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने सदन को यह भी जानकारी दी कि यह विधेयक अभिभावकों को डर नहीं, अधिकार देता है। इसमें यह स्पष्ट है कि अब शिक्षा व्यवस्था ‘बैलेंस शीट’ पर नहीं, ‘बच्चों के भविष्य’ पर आधारित होगी। उन्होंने कहा कि शिकायत के लिए यदि न्यूनतम 15 प्रतिशत अभिभावकों का समर्थन आवश्यक रखा गया है, तो इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विरोध संगठित हो और स्वार्थ से प्रेरित व्यक्तिगत दुरुपयोग न हो। उन्होंने कहा कि यह विधेयक शिक्षा से जुड़े भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार करेगा। शिक्षा को मुनाफे की दुकान समझने वालों को चेतावनी दी जा रही है कि या तो सेवा करें, या सजा भुगतें। उन्होंने दिल्ली की पूर्व आप सरकार पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि जिसने एक दशक तक शिक्षा सुधार के नाम पर प्रचार किया, वही आज शिक्षा की सबसे बड़ी बर्बादी का कारण है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि क्लासरूम घोटाले में करोड़ों रुपये का भ्रष्टाचार हुआ, जिसकी पुष्टि विभिन्न जांच एजेंसियों द्वारा की गई है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि दिल्ली की पूर्व सरकार की शिक्षा नीति ने दिल्ली के छात्रों का भविष्य अंधेरे में डुबाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। आप के नेता अरविंद केजरीवाल, जो कभी गवर्नेस के पोस्टर ब्वॉय थे, उन्हीं की सरकार में स्कूलों की बिल्डिंगें टूटीं, टीचरों की भर्तियाँ लटकीं, और बच्चों की पढ़ाई सड़क पर आ गई। अदालतें आज पूछ रही हैं कि जिन स्कूलों में बच्चों को बुनियादी सुविधाएं नहीं, वहां बिल्डिंग लागत कैसे दस गुना बढ़ गई? जवाब में ‘आप’ की चुप्पी वहीं पुरानी है ‘हमसे सवाल मत पूछो, हम तो ईमानदार हैं।’
मुख्यमंत्री ने कहा कि दिल्ली में अरसे से शिक्षा सिर्फ किताबों और ख्वाबों में रह गई थी। जमीनी हकीकत यह थी कि 1,677 निजी अनएडेड स्कूल, मनमाने ढंग से फीस बढ़ाते रहे और सरकारें या तो सोती रहीं या मिली हुई थीं। मां-बाप रोते रहे, बच्चे डरते रहे, और स्कूल फीस के नाम पर करोड़ों का वारा-न्यारा करते रहे।
विधेयक की विस्तृत जानकारी देते हुए शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने सदन को बताया कि विपक्ष द्वारा फैलाया गया यह आरोप कि हम निजी स्कूलों को 10 प्रतिशत फीस वृद्धि की अनुमति देंगे, पूरी तरह झूठ है। इस बिल में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। वास्तविकता यह है कि इनके शासनकाल में ही बार-बार चुनिंदा स्कूलों को फीस बढ़ाने की मंजूरी दी गई। वर्ष 2016–17 में 30 स्कूल, 2017–18 में 60, कोविड के दौरान 94, 2021–22 में 195 और 2022–23 में 145 स्कूल। सूद ने कहा कि मुख्यमंत्री जी ने संवेदनशीलता और दूरदर्शिता से इस बिल के हर प्रावधान को तैयार कराया है, जिसमें अभिभावकों का हित केंद्र में है। यह दृष्टिकोण संतुलित है—न तो स्कूलों पर अराजक दबाव और न ही अभिभावकों पर आर्थिक बोझ। सूद ने यह भी जानकारी दी कि हमने यह भी सुनिश्चित किया है कि फीस बढ़ाने में अभिभावकों के हाथ में वीटो पावर हो—पांच में से एक भी सदस्य सहमत न हो, तो फीस नहीं बढ़ेगी। यह प्रावधान दिल्ली के 18 लाख बच्चों और उनके अभिभावकों को सीधा लाभ देगा।
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(Udaipur Kiran) / धीरेन्द्र यादव
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