Next Story
Newszop

देश को आजादी दिलाने में कानपुर का अहम योगदान

Send Push

कानपुर, 14 अगस्त (Udaipur Kiran) । आज भारत देश अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। जिसे लेकर देश भर में उत्साह का माहौल है लेकिन क्या आप जानते हैं? स्वतंत्रता की इस लड़ाई में कानपुर शहर की अपनी अहम भूमिका रही है। देश को अंग्रेजी हुकूमत की बेड़ियों से रिहा करवाने के लिए इसी शहर से कई आंदोलनों की शुरुआत हुई थी। जो देश आजाद होने तक जारी रहीं। चंद्रशेखर आजाद से लेकर शहीद भगत सिंह और राजगुरु जैसे महान क्रांतिकारियों ने इसी शहर में रहकर अंग्रेजो को कई बार धूल चटाने का काम किया था। कानपुर के कर्नलगंज इलाके में रहने वाले बुजुर्ग और वरिष्ठ समाजसेवी सर्वेश पांडेय उर्फ निन्नी जिन्होंने दर्जनों क्रांतिकारियों के संघर्षों और उनके पराक्रमों को बहुत ही करीब से जाना है। जिनका आज भी वह बड़े ही विस्तार से व्याख्यान भी करते हैं।

भले ही देश को आजाद हुए 79 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन इस आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों की अहम भूमिका रही है। एक समय था जब क्रांतिकारी कानपुर में रहकर अंग्रेजो से लोहा लेते थे। समाजसेवी सर्वेश पांडेय उर्फ निन्नी बताते हैं कि 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम नाना राव पेशवा द्वितीय के नेतृत्व में हुआ था। उनके इस आंदोलन को तात्या टोपे और अजीमुल्ला खान ने सहयोग दिया था। इस आंदोलन में बड़े पैमाने पर अंग्रेजी हुकूमत का का विरोध हुआ था। साथ ही सत्तीचौरा और बीबीगढ़ कांड इसी विद्रोह से जुड़े है।

उन दिनों ब्रिटिश सरकार की कई कपड़ा मिलें कानपुर में संचालित हो रहीं थीं। जिसका सीधा लाभ अंग्रेजी हुकूमत को हो रहा था। उन्हें आर्थिक रूप से चोट पहुंचाने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आवाहन पर जनपद में ब्रिटिश कपड़ो का बहिष्कार हुआ था। कपड़ा मिलों में काम करने वाले भारतीय मजदूरों ने भी हड़ताल कर दी। जिससे अंग्रेजी हुक़ूमत को काफी नुक्सान हुआ था। पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी ने भी इस आंदोलन में अपना सहयोग देते हुए अपने अखबार प्रताप के जरिये आंदोलन को गति दी।

शहीद भगत सिंह पंजाब से आने के बाद कानपुर में काफी समय तक रहे। यहां पर उन्होंने फीलखाना स्थित गणेश शंकर विद्यार्थी के अखबार प्रताप में अपना नाम बदल बलवंत सिंह के नाम से पत्रकारिता करते थे। यहीं पर उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आजाद से हुई थी। आजाद यहां काफी समय तक भूमिगत रहे।

महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन को समर्थन देते हुए कानपुर में कई जुलूस निकाले गए। इतना ही नहीं मजदूरों और विद्यार्थियों ने भी गिरफ्तारी दी थी।

इसी बीच साल 1931 को पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी साम्प्रदायिक दंगों की भेंट चढ़ गए और उनका नाम शहीदों में दर्ज ही गया।

महात्मा गांधी का भारत छोड़ो आंदोलन का कानपुर में बड़ा असर देखने को मिला। जहां तमाम क्रांतिकारियों ने गिरफ्तारियां दी थी।

(Udaipur Kiran) / रोहित कश्यप

Loving Newspoint? Download the app now