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नक्सली प्रेस नोट अधकचरा और भ्रामक, नक्सली कैडरों के पास आत्मसमर्पण ही एकमात्र विकल्प : सुंदरराज पी.

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– 21 मई 2025 भारत के वामपंथी उग्रवाद विरोधी इतिहास में एक निर्णायक दिन के रूप में याद किया जाएगाजगदलपुर, 27 मई . बस्तर आईजी सुंदरराज पी. ने नक्सली संगठन द्वारा 25 मई काे दंडकारण्य स्पेशल ज़ोनल कमेटी के प्रवक्ता द्वारा 21 मई को अबूझमाड़ क्षेत्र में हुई मुठभेड़ के संबंध में जारी प्रेस वक्तव्य के बयान काे उन्हाेंने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने और जनभावनाओं को भटकाने का निराशाजनक प्रयास बताया. उन्होंने इस प्रेस नोट को अधकचरा, भ्रामक और साजिशपूर्ण करार देते हुए कहा कि यह एक नेतृत्वविहीन और बिखरती हुई संगठन की प्रासंगिकता बनाए रखने की नक्सली संगठन की अंतिम कोशिश है. जिसमें भाकपा (माओवादी) के महासचिव बसवराजु उर्फ बीआर दादा उर्फ गंगन्ना सहित कुल 27 नक्सली कैडरों के मारे जाने की पुष्टि की गई है.

बस्तर आईजी ने कहा कि अब नक्सली कैडरों के पास एकमात्र सम्मानजनक विकल्प यह है कि वे आत्मसमर्पण करें, हिंसा का रास्ता छोड़ें और समाज की मुख्यधारा में लौटें. सरकार लगातार पुनर्वास और शांतिपूर्ण जीवन की पेशकश कर रही है. यदि कुछ तत्व अब भी इस अवसर को नजर अंदाज करते हैं, तो उनका अंत निकट और निश्चित है. बसव राजु के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर चर्चाएं अब बेमानी हैं. बसव राजु की मौत के साथ ही यह आंदोलन अपनी वैचारिक और संचालन क्षमता भी खो चुका है. यह माना जा सकता है कि बसव राजु ही इस अवैध संगठन का अंतिम महासचिव था.

आईजीपी सुंदरराज ने स्पष्ट किया कि 21 मई 2025 भारत के वामपंथी उग्रवाद विरोधी इतिहास में एक निर्णायक दिन के रूप में याद किया जाएगा. मारे गए बसवराजु, जो कि नक्सली संगठन के सर्वोच्च नेता की मौत से संगठन को केवल सैन्य स्तर पर ही नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से भी गहरा आघात पहुंचा है. नक्सली आंदोलन के मुख्य गढ़ में 27 सशस्त्र उग्रवादियों का खात्मा सुरक्षा बलों की दृढ़ता और प्रभावशीलता का प्रत्यक्ष प्रमाण है. माओवादी बयान में बसवराजु की मौत को बलिदान के रूप में प्रस्तुत करने के प्रयास की आलोचना करते हुए बस्तर आईजी सुंदरराज पी. ने कहा कि यह दशकों की हिंसा को महिमा मंडित करने वाला झूठा प्रचार है . बसवराजु कोई शहीद नहीं था, बल्कि वह आतंक और हिंसा के युग का मुख्य सूत्रधार था, जिसने हजारों निर्दोष आदिवासियों, महिलाओं और बच्चों की हत्या करवाई, और सैकड़ों सुरक्षाबलों को आईईडी धमाकों और घात लगाकर किए गए हमलों में मौत के घाट उतारा . ऐसे व्यक्ति को जननायक के रूप में चित्रित करना न केवल भ्रामक है, बल्कि उन वीरों और नागरिकों का घोर अपमान है जिन्होंने बस्तर की शांति और समृद्धि के लिए अपने प्राणों की आहुति दी.

बस्तर आईजी के अनुसार उक्त प्रेस वक्तव्य नक्सली कैडरों के गिरते मनोबल को संबल देने की विफल कोशिश है. लगातार चलाए जा रहे खुफिया आधारित अभियानों के कारण नक्सली संगठन टुकड़ों में बिखर चुका है और अब मूलभूत समन्वय बनाए रखने में भी असमर्थ दिख रहा है. उन्हाेंने कहा कि भाकपा (माओवादी) संगठन आज पूर्णतः विघटन की कगार पर है, जहां न तो कोई सक्षम नेतृत्व बचा है और न ही कोई रणनीतिक दिशा. उन्होंने बताया कि रमन्ना की 2019 में मौत के बाद पिछले छह साल से नक्सली संगठन द्वारा आधिकारिक तौर पर किसी के नियुक्त होने की प्रमाणित दस्तावेज नहीं मिला है. क्योंकि उनका संगठन नेतृत्वविहिन हो चुका है, उनके पास ऐसा कोई लायक कैडर नहीं बचा है, जो संगठन को आगे ले जा सकता है, सब डरे हुए हैं. उन्हाेंने दोहराया कि संकल्प: नक्सल मुक्त बस्तर मिशन अब केवल एक सपना नहीं, बल्कि तेजी से साकार होती हुई हकीकत है. एक समय आतंक और हिंसा का प्रतीक रहा नक्सली आंदोलन अब अपने अंतिम दौर में पहुंच चुका है, जबकि शांति और विकास की नई सुबह बस्तर में दस्तक दे चुकी है.

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/ राकेश पांडे

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