भारत के बैंकिंग सिस्टम में जल्द ही एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। केंद्र सरकार छोटे-छोटे सरकारी बैंकों को आपस में मिलाकर बड़े और ताकतवर बैंक बनाने की योजना पर काम कर रही है। इसका मकसद है भारत को वैश्विक स्तर पर दमदार बैंकिंग सिस्टम देना, जो दुनिया के टॉप बैंकों से मुकाबला कर सके। प्राइवेटाइजेशन के बाद अब सरकार ‘बैंक मर्जर मॉडल’ को फिर से तेज करने जा रही है।
वर्ल्ड-क्लास बैंकिंग सिस्टम की जरूरतवित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में संकेत दिए कि भारत को अब विश्व-स्तरीय बैंकिंग सिस्टम की जरूरत है। इसके लिए सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के बीच गहन चर्चा चल रही है। लक्ष्य है छोटे बैंकों को मिलाकर कुछ ऐसे बड़े बैंक बनाना, जो दुनिया के टॉप 100 बैंकों में शामिल हो सकें। यह कदम भारत की आर्थिक ताकत को और मजबूत करने की दिशा में अहम साबित हो सकता है।
सिर्फ 4 बड़े सरकारी बैंक रह जाएंगे!फिलहाल देश में 12 सरकारी बैंक हैं, लेकिन सूत्रों के मुताबिक, सरकार इनकी संख्या घटाकर सिर्फ 4 बड़े बैंक तक सीमित करना चाहती है। ये चार बैंक होंगे:
- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI)
- पंजाब नेशनल बैंक (PNB)
- केनरा बैंक (Canara Bank)
- बैंक ऑफ बड़ौदा (Bank of Baroda)
बाकी छोटे और मध्यम आकार के बैंकों का विलय इन्हीं चार दिग्गज बैंकों में किया जा सकता है।
कौन से बैंक होंगे मर्ज?सूत्रों की मानें तो निम्नलिखित बैंकों का विलय बड़े बैंकों में हो सकता है:
- इंडियन ओवरसीज बैंक (IOB)
- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (CBI)
- बैंक ऑफ इंडिया (BOI)
- बैंक ऑफ महाराष्ट्र (BOM)
- यूको बैंक (UCO Bank)
- पंजाब एंड सिंध बैंक (Punjab & Sind Bank)
खास बात यह है कि यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन बैंक को मिलाकर देश का दूसरा सबसे बड़ा सरकारी बैंक बनाया जा सकता है, जो संपत्ति और आकार में SBI के बाद नंबर दो पर होगा।
मर्जर का असर: कर्मचारी और ग्राहक पर क्या होगा?इस बड़े बदलाव का असर 2.3 लाख बैंक कर्मचारियों और करोड़ों खाताधारकों पर पड़ने वाला है।
कर्मचारियों की चुनौतियां: सरकार ने भले ही नौकरियों की सुरक्षा का वादा किया हो, लेकिन मर्जर की वजह से कई शाखाएं बंद हो सकती हैं। इससे कर्मचारियों के प्रमोशन, ट्रांसफर और इन्क्रीमेंट पर असर पड़ सकता है।
ग्राहकों पर प्रभाव: खाताधारकों को नई पासबुक, चेकबुक और अकाउंट नंबर मिल सकते हैं। हालांकि, फिक्स्ड डिपॉजिट (FD), लोन या ब्याज दरों पर तुरंत कोई बदलाव नहीं होगा।
मर्जर के फायदे और चुनौतियांफायदे:
- बड़े बैंक वैश्विक स्तर पर ज्यादा प्रतिस्पर्धी होंगे।
- बैंकों की पूंजी और लोन देने की क्षमता बढ़ेगी।
- ऑपरेशनल खर्च कम होगा और बैंकिंग सेवाएं बेहतर होंगी।
चुनौतियां:
- मर्जर के दौरान तकनीकी और प्रशासनिक दिक्कतें आ सकती हैं।
- शाखाओं के समेकन से ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग सेवाओं की पहुंच कम हो सकती है।
- कर्मचारियों में असंतोष और ट्रांसफर से जुड़ी समस्याएं बढ़ सकती हैं।
यह मर्जर भारत के बैंकिंग सिस्टम को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकता है, लेकिन इसके लिए सही प्लानिंग और ग्राहकों-कर्मचारियों के हितों का ध्यान रखना जरूरी होगा।
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